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24 ज़िल्हिज्जा तीन कुरआनी मुनासिबतों से सजा हुआ

9:25 - September 27, 2016
समाचार आईडी: 3470781
अंतरराष्ट्रीय समूह: आज, 24 ज़िल्हिज्जा इस्लामी इतिहास में तीन महत्वपूर्ण मुनासिबतों के साथ है कि सभी तीन घटनाओं का कुरान में ज़िक्र है।
24 ज़िल्हिज्जा तीन कुरआनी मुनासिबतों से सजा हुआ

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी (IQNA) विएना इमाम अली (अ.स) इस्लामी केंद्र के केबल चैनल के हवाले से, 24 ज़िल्हिज्जा मुबाहिले का दिन है कि इस दिन पैगंबर (PBUH) अपने अहले बैत यानि फातिमा और अली और हसन और हुसैन (अ.स.)के साथ Najran के ईसाइ विद्वानों से मुबाहेले के लिऐ गऐ लेकिन Najran के विद्वानों ने डर कर मुबाहेला करने से इनकार कर दिया और रसूल अल्लाह (PBUH )के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

« فَمَنْ حَآجَّكَ فِیهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْاْ نَدْعُ أَبْنَاءنَا وَ أَبْنَاءكُمْ وَ نِسَاءنَا وَ نِسَاءكُمْ وَ أَنفُسَنَا و أَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَةُ اللّهِ عَلَى الْكَاذِبِینَ : जब, आप के लिए ज्ञान आ गया है तो इसके बाद जो आप के साथ बहस और लड़ने के लिऐ खड़े हैं, उन्हें बताओ, हम अपने बच्चों को और तुम अपने बच्चों को और हम अपनी महिलाओं को और तुम अपनी महिलाओं को और हम अपने करीबी रिश्तेदारों को हैं और आप अपने करीबी रिश्तेदारों को ले आओ;। फिर हम मुबाहेला करें और जो लोग झूठ बोल रहे है उन पर अल्लाह का अभिशाप करें "(सूरा अल-इमरान, आयत न. 61)

24 ज़िल्हिज्जा पैगंबर के अहले बैत (PBUH) की शान आयते तत्हीर नाज़िल होने का दिन है कि इसकी पूरी कहानी महान हदीस Kisa में आई है।

«وَقَرْنَ فِی بُیوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ الْجَاهِلِیةِ الْأُولَى وَأَقِمْنَ الصَّلَاةَ وَآتِینَ الزَّكَاةَ وَأَطِعْنَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ إِنَّمَا یرِیدُ اللَّهُ لِیذْهِبَ عَنكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَیتِ وَیطَهِّرَكُمْ تَطْهِیرًا: और अपने घरों में रहना और पहली अज्ञानता की तरह (लोगों) के बीच दिखाई न दो, और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो, और अल्लाह व उसके रसूल का पालन करो और ओह Ahlul Bayt- भगवान चाहता है कि तुम से बुराई और पाप को दूर रखे और तुम लोगों को पूरी तरह से शुद्ध रखे। "(सूरा अल अहज़ाब आयत, 33)

24 ज़िल्हिज्जा का दिन वह है कि इमाम अली (अ.स) मस्जिद में और नमाज़ के दौरान अपनी अंगूठी को भिखारी को दान कर दी और सूरा अलमायदा की आयत 55 आयत विलायत से प्रसिद्ध आप की शान में उतरी।

« إِنَّما وَلِیکُمُ اللَّهُ وَ رَسُولُهُ وَ الَّذینَ آمَنُوا الَّذینَ یقیمُونَ الصَّلاةَ وَ یؤْتُونَ الزَّکاةَ وَ هُمْ راکِعُونَ: लेकिन तुम्हारा सरपरस्त केवल भगवान और उसका रसूल और वह लोग जो ईमान लाऐ हैं और नमाज़ को क़ायम करते हैं जब कि रुकू की हालत में ज़कात देते हे" (आयत 55 मायदा)

जाओ ऐ गरीब भिखारी

अली के घर पर दस्तक दो

कि बादशाही नगीना

अपने करम से भिखारी को दियाहै

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