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भारतीय मुसलमानों की सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति पर एक नज़र

17:52 - December 25, 2019
समाचार आईडी: 3474271
अंतर्राष्ट्रीय समूह- गैलप संस्थान के आंकड़े बताते हैं कि भारतीय मुस्लिम परिवारों की आय अन्य जातीयताओं की तुलना में बहुत कम है और जीविकोपार्जन करना मुश्किल है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्कों को अलग कर दिया गया
IQNA की रिपोर्ट; दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हाल ही की अशांति इस देश की नागरिकता कानून में संशोधन और बाबरी मस्जिद मामले ने एक बार फिर देश में खूनी अराजकता और नरसंहार से ग्रस्त जातीय और धार्मिक संघर्ष के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा दी है।
 
भारत को वस्तुतः एक अरब से अधिक लोगों की आबादी के साथ विविधता और ऐक दूसरे की ज़िद का योग माना जाता है, जिसमें लगभग सभी मानव निर्मित धर्म और आस्मानी धर्म शामिल हैं। इस विविध और बहुसांस्कृतिक आबादी में इस देश के राजनेताओं और शासकों द्वारा हर बात से अधिक, समानता और एकजुटता जैसे मुद्दों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है, और इन लोगों ने पूरे जातीय और धार्मिक संघर्षों के बावजूद, इस अत्यधिक विविध समुदाय को एक साथ लाने की कोशिश की है।
 
इस दावे को भारतीय संविधान में पूरी तरह से देखा जा सकता है। यह संविधान दुनिया के सभी स्वतंत्र देशों के बीच सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें 395 सिद्धांत, 12 अनुलग्नक और 83 परिशिष्ट शामिल हैं, और इस क़ानून में भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य पेश किया है जो अपने नागरिकों के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
 
उदाहरण के लिए, भारत के संविधान का अनुच्छेद 29 में आया है: कोई भी नागरिक धर्म, जाति, सामाजिक वर्ग, भाषा और इस तरह के कारणों के लिए, सरकार द्वारा प्रायोजित शैक्षिक संस्थानों में स्वीकार करने या सरकारी सहायता प्राप्त करने से रोका नहीं जाऐगा। अनुच्छेद 30 संविधान में स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर जोर दिया गया है और कहा गया है कि सभी भाषाई या धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार होगा।
 
भारतीय मुसलमान
 
भारत की मुस्लिम आबादी 1961 से वर्ष 2011 तक दोगुनी हो गई है और भारत के विभिन्न पहलुओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। हालांकि, यह अल्पसंख्यक अन्य भारतीयों सभी धार्मिक समूहों की तुलना में अधिक आर्थिक अभाव का सामना कर रहा है। भारत में नेशनल काउंसिल फॉर एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार, अन्य भारतीय अल्पसंख्यक की तुलना में मुसलमान लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। गैलप डेटा से पता चलता है कि इस देश में मुसलमान हिंदुओं या अन्य लोगों की तुलना में अपने कम जीवन स्तर से संतुष्ट हैं। दूसरी ओर, मुसलमानों को हिंदुओं और अन्य लोगों की तुलना में यह कहने की अधिक संभावना है कि उनका जीवन उसी स्तर पर है या बिगड़ रहा है।
गैलप इंस्टीट्यूट के आंकड़े बताते हैं कि भारतीय मुस्लिम परिवारों की आय भी अन्य हिंदू बहुमत व अल्पसंख्यकों की तुलना में बहुत कम है। 47% मुसलमानों का कहना है कि उनकी वर्तमान पारिवारिक आय हिंदुओं और अन्य धर्मों की तुलना में मुश्किल या बहुत मुश्किल है।
 
एक प्रमुख भारतीय न्यायविद् राजिंदर सच्चर द्वारा भारतीय मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर 2006 की एक रिपोर्ट तय्यार की गई और उस समय के भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को पेश की गई जो यह दर्शाता है कि गरीबी में मुसलमानों के बीच शिक्षा और साक्षरता की कमी उनपर प्रभावी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा सेवाएं प्राप्त करना देश के मुस्लिम समुदाय के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। शिक्षा का हुसूल, विशेष रूप से भारत भर में, बहुत अधिक नहीं है, लेकिन भारतीय मुस्लिमों को हिंदुओं की तुलना में अपनी शिक्षा के स्तर को प्रारंभिक या कम होने की संभावना है।
 
मुसलमानों की आर्थिक गरीबी
 
मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ ऐतिहासिक हिंसा ने भारतीय मुस्लिम आबादी को सरकार द्वारा स्थानीय अलगाव के कुछ रूप का सामना करना पड़ा है। यह विषय 1970 के दशक के मध्य में और भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा शुरू हुई और अगले दशकों में जारी रही, जिसकी चरम सीमा वर्ष 1992  में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में देखी गई।
कुछ प्रमुख शहरों में, मुसलमानों ने अपने मोहल्लों को अन्य धर्मों से अलग कर लिया, जैसे कि हिंदू, लेकिन इसके कारण अल्पसंख्यक वाले मोहल्ले कट्टर हिंदू द्वारा आक्रमण का निशाना बने। इस प्रकार के मोहल्लों को मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता और गुजरात के कई शहरों में देखा जा सकते हैं। मुसलमानों और हिंदुओं के बीच सांस्कृतिक संपर्क की कमी के कारण इन मोहल्लों में रहने वाले मुसलमानों में गरीबी बढ़ी है।
 
रिपोर्ट *** दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक को अलग करना
 
इन मोहल्लों में नौकरी खोजने और उचित शिक्षा प्राप्त करने की संभावना कम है और इसके परिणामस्वरूप, आर्थिक और शैक्षिक अवसरों में गिरावट और सामान्य रूप से भारतीय समाज में मुसलमानों के बारे में रूढ़िवाद को मजबूत किया गया है। दूसरी ओर, इस गरीबी और अशिक्षा के कारण मुस्लिम चरमपंथी समूह बन गऐ और जो बहर हाल मुस्लिम समुदाय और पूरे भारत को नुकसान पहुँचा सकता है।
 
मोहम्मद हसन गोदरज़ी की रिपोर्ट
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