तेहरान (IQNA)भारत में सत्तारूढ़ पार्टी, जो दुर्भाग्य से एक चरमपंथी और इस्लाम विरोधी समूह है, ने यह दिखाने के लिए कि हिंदू मुस्लिम विरोध पर्दर्शनों के ख़िलाफ़ और उनकी नागरिकता छीनने वाले कानून के समर्थक हैं ठगों और उपद्रवीयों का इस्तेमाल कर रही है; वास्तव में, ये हिंसा सत्ता पक्ष के भाड़े के मज़दूरों द्वारा की गई थी ता कि प्रदर्शनकारियों को यह संदेश दें कि उनके विरोध प्रदर्शनों का दमन किया जाऐगा।
अरबी समाचार 21 के अनुसार, भारत के दक्षिणपंथी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका के बावजूद, भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के बढ़ने ने इसके कारणों और जड़ों पर सवाल उठाए हैं। हाल के दिनों में और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के बाद, भारत में हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष तेज हो गया। मुसलमानों पर हाल के हिंदू हमलों के परिणामस्वरूप 50 से अधिक लोग मारे गए और 250 अन्य घायल हो गए और कई मस्जिदें जली दी गईं।
भारतीय राष्ट्रीय समाचार पत्र के प्रधान संपादक ज़फर अल-इस्लाम खान ने इस बारे मे कहा, हाल के घटनाक्रम और मुस्लिमों के खिलाफ़ हिंसा, राष्ट्रीय सुधार अधिनियम के खिलाफ़ मुस्लिम विरोध से संबंधित हैं।यह कानून मुसलमानों को नागरिकता से वंचित करता है जब कि पड़ोसी देशों से आऐ गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्रदान करता है।
उन्होंने कहाः कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की घोषणा के बाद कि लोगों को शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार है हिंसक विरोध के ज़रये मुक़ाबला करने में विफल रही, इसलिए सत्तारूढ़ दल ने नई दिल्ली और अन्य शहरों में इन विरोधों को दबाने के लिए कुछ ठगों और बदमाश लोगों का इस्तेमाल किया।
विरोध का दमन; सत्तारूढ़ दल का संदेश
ज़फ़र अल-इस्लाम ख़ान ने जोर दिया:इस पार्टी का उद्देश्य यह दिखाना है कि हिंदू मुस्लिम विरोध के ख़िलाफ़ हैं और उनकी नागरिकता छीनने वाले कानून के समर्थक हैं ता कि विरोध प्रदर्शन करने वालों को संदेश भेजें कि उनका विरोध इस तरह दबाया जाऐगा।
मोहम्मद मुकर्रम बलआवी, एशिया-मध्य पूर्व एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी कहाः "जिन लोगों ने विरोध प्रदर्शन करने वालों पर हमला किया संगठित गिरोह के सदस्य थे और उनके हमले तब शुरू हुए जब सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं द्वारा शांतिपूर्ण और वैध मुस्लिम विरोध के खिलाफ एक स्टैंड लिया और मुख़ालिफ़त की साथ ही नई नागरिकता कानून लागू करने पर आंतरिक मंत्रालय ने ज़िद करना शुरू किया।
उन्होंने कहा: "मुसलमानों ने इस ओर इशारा करते हुऐ कि पुलिस द्वारा अत्याचार पर जवाब नहीं देना या सह-संचालन और कानूनी विरोध को दबाने में मदद करना, इस गिरोहों पर सत्तारूढ़ दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक आरएसएस का अनुसरण करने का आरोप लगाया है।
बालआवी के अनुसार, कुछ इस्लामी नेताओं का दावा है कि सरकार ने मुस्लिमों के खिलाफ़ हमला करने के लिए आपराधिक समूहों को हरी बत्ती दी है और उनका मानना है कि गुजरात में जो नरसंहार मोदी की अध्यक्षता और एक सरकारी अधिकारी, अमित शाह के सहयोग में हुआ था। और विरोध प्रदर्शनों में पुलिस को बेअसर करने और मुसलमानों के खिलाफ अपनी ताकतों का इस्तेमाल करने और बड़े पैमाने पर इसी तरह के नरसंहारों के लिए अपराधियों को प्रोत्साहित करने और गोपनीयता का सहारा लिया।
मुसलमानों की भूमिका कम करो
राष्ट्रीय सुधार कानून के संबंद्ध में बात को देखते हुए जो मुसलमानों को नागरिकता से बाहर करता है, यह सवाल उठता है कि क्या मुसलमानों को दूसरे दर्जे के नागरिक माना जाऐगा? ज़फ़र अल-इस्लाम खान ने जवाब में कहा: "वर्तमान सरकार नस्लवादी है और हिंदुओं को देश का मालिक और मुसलमानों और ईसाइयों को द्वितीय श्रेणी के नागरिक के रूप में मानती है।"
भारतीय संविधान इस सरकार की जातिवादी मांगों का अनुपालन नहीं करता है। इसलिए, यदि यह सरकार आने वाले वर्षों में शासन करना जारी रखती है, तो वह संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्तंभ को हटा सकती है और हिंदू धर्म में नस्लवादी सामग्री जोड़ सकती है।
बलआवी ने कहा, "यूनाइटेड किंगडम की स्वतंत्रता के बाद से मुस्लिमों की भूमिका में तेजी से गिरावट आई है, क्योंकि सभी सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सरकारी संस्थानों में मुसलमानों का अनुपात और नागरिकता के अधिकार का पाना उनकी आबादी के प्रतिशत से मेल नहीं खाता है।"
उन्होंने कहा: जातिवादी प्रथाऐं न केवल मोदी सरकार में, बल्कि पिछली सरकारों में भी दर्जे की गई है जिसने मुसलमानों की भूमिका कम कर दी और उन्हें दूसरे दर्जे की नागरिकता में स्थानांतरित कर दिया। मोदी सरकार और उसके पूर्व समकक्षों के बीच मुख्य अंतर "कार्रवाई की निर्भीकता और खुलापन" है और इनके कार्य अधिक तीव्र और अधिक रूप से स्पष्ट हैं।
दूसरी ओर, भारत में सीरिया के पत्रकार वायल अव्वद ने इस बात पर जोर दिया: "जातीयता, धर्म या वर्ग की परवाह किए बिना सभी भारतीय संवैधानिक रूप से समान हैं, लेकिन अब जो कुछ हो रहा है वह मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को ब्लैकमेल करने के लिए सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए दुरुपयोग और प्रयासों का परिणाम है।" है। संविधान किसी भी नागरिक के बीच कोई अंतर नहीं करता है यदि भारत सरकार इसका पालन न करे और दुरुपयोग करे तो स्पष्ट रूप से भेदभाव देखेंगे।
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