हज, ईश्वरीय कृपा का उफनता हुआ सोता है। आप हाजियों में से प्रत्येक को इस समय यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि पवित्रता और अध्यात्म से तृप्त इन संस्कारों और क्रियाओं के दौरान अपने हृदय और आत्मा को यथोचित ढंग से पवित्र करके कृपा, प्रतिष्ठा और शक्ति के इस महान केन्द्र से अपने पूरे जीवन के लिए एक ख़ज़ाना प्राप्त कर ले। दयावान ईश्वर के समक्ष गिड़गिड़ाना और समर्पण, मुसलमानों के कंधों पर रखे गए कर्तव्यों के प्रति कटिबद्धता, धर्म और संसार के कार्यों के लिए उत्साह, प्रगति और आगे बढ़ना, भाइयों के मामले में दया व क्षमाशीलता, कठिन घटनाओं के संबंध में साहस और आत्म विश्वास, हर जगह हर मामले में ईश्वर की सहायता और मदद की आशा, संक्षेप में यह कि शिक्षण व प्रशिक्षण के इस ईशवरीय मंच पर मुसलमान कहलाने योग्य इंसान के निर्माण को आप अपने लिए मुहैया कर सकते हैं और इन आभूषणों से सुसज्जित तथा इन ख़ज़ानों से मालामाल अपने अस्तित्व को आप अपने देश, अपने राष्ट्र बल्कि इस्लामी समुदाय को उपहार के रूप में ले जायें।
इस्लामी समुदाय को आज सबसे बढ़कर ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता है जो ईमान, पवित्रता और निष्ठा के साथ चिंतन शक्ति व व्यवहार तथा आत्मिक व आध्यात्मिक आत्म निर्माण के साथ साथ द्वेषी शत्रुओं के मुकाबले में दृढ़ता की भावना से सुशोभित हों। यह महान मुस्लिम समुदाय की उन कठिनाइयों से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है जिनमें या तो खुले आम शत्रुओं द्वारा या इच्छाशक्ति, ईमान और तत्वदर्शिता के अभाव के कारण प्राचीन कालों से ही वह फंस गया है।
निश्चित रूप से वर्तमान समय मुसलमानों के जागने और पुनः अपनी पहचान प्राप्त करने का समय है। इस तथ्य को उन चुनौतियों के माध्यम से भी स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है जो मुस्लिम देशों के समक्ष उत्पन्न हुई हैं। यही वह परिस्थितियां हैं जिनमें ईमान, ईश्वर पर भरोसे, तत्वदर्शिता और युक्ति पर आधारित इच्छाशक्ति और इरादा इन चुनौतियों में मुस्लिम राष्ट्रों को विजय और गौरव तक पहुंचा सकता है और उनके भविष्य के संबंध में प्रतिष्ठा और सम्मान को सुनिश्चित कर सकता है। विरोधी मोर्चा जो मुसलमानों की चेतना और प्रतिष्ठा को सहन नहीं कर पा रहा है अपनी पूरी शक्ति से मैदान में उतर पड़ा है और मुसलमानों को पीछे ढकेलने, उन्हें कुचलने और उन्हें आपस में उलझा देने के उद्देश्य से अपने समस्त सुरक्षा, मानसिक, सामरिक, आर्थिक और प्रचारिक हथकंडों को प्रयोग कर रहा है। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से लेकर सीरिया, इराक़, फ़िलिस्तीन और फ़ार्स की खाड़ी के देशों तक पश्चिमी एशिया के देशों पर एक नज़र दौड़ाने, इसी तरह लीबिया, मिस्र और ट्यूनीशिया से लेकर सूडान और कुछ अन्य देशों तक उत्तरी अफ़्रीक़ा के देशों पर एक दृष्टि डालने से बहुत से तथ्य स्पष्ट हो जाते हैं। गृह युद्ध, अंधे धार्मिक उन्माद, राजनैतिक अस्थिरताएं, निर्मम आतंकवाद का प्रसार, चरमपंथी गुटों और गलियारों की पैदावार जो इतिहास की असभ्य जातियों की भांति इंसानों का सीना चीरकर उनके दिल निकाल कर दांतों से भंभोड़ते हैं, वह बंदूक़धारी जो बच्चों और महिलाओं को मार डालते हैं, पुरुषों के सिर काट देते हैं और महिलाओं से दुराचार करते हैं, कभी कभी वह यह शर्मनाक और घृणित अपराध धर्म के झंडे के नीचे अंजाम देते हैं, यह सब कुछ बाहरी शक्तियों की इंटेलीजेन्स एजेंसियों और क्षेत्र में उनके सहयोगी सरकारी तत्वों की शैतानी व साम्राज्यवादी योजनाओं की देन है जो देशों के भीतर अनुकूल क्षेत्रों में व्यवहारिक होने की संभावना प्राप्त कर लेती हैं और राष्ट्रों के भाग्य को अंधकारमय और उनके जीवन को नरक बना देती हैं। इन परिस्थितियों और हालात में यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि मुस्लिम देश अपने भौतिक और नैतिक शून्य को भर सकेंगे और सुरक्षा, कल्याण, ज्ञान के क्षेत्र में प्रगति और अंतर्राष्ट्रीय साख प्राप्त करें जो जागरूकता और पहचान की बहाली का प्रतिफल है। यह कठिन परिस्थितियां इस्लामी जागरूकता की लहर को निष्फल और इस्लामी जगत में उत्पन्न होने वाली मानसिक तत्परता को नष्ट कर सकती हैं और एक बार फिर मुस्लिम राष्ट्रों को लम्बे समय के लिए शिथिलता, एकांत और पतन की ओर ढकेल सकती हैं तथा उनके मूल भूत मामलों जैसे अमरीका तथा ज़ायोनिज़्म के हस्तक्षेप से फ़िलिसतीन तथा मुस्लिम राष्ट्रों की मुक्ति को ठंडे बस्ते में डाल सकती हैं।
इसके मूल भूत और प्रमुख इलाज का सारांश दो वाक्यों में बयान किया जा सकता है और यह दोनों ही हज से मिलने वाले प्रमुख पाठ हैं:
प्रथमः एकेश्वरवाद के ध्वज के नीचे मुसलमानों की एकता व बंधुत्व
द्वितीयः शत्रु की पहचान और उसके षडयंत्रों तथा कार्यशैलियों का मुक़ाबला
बंधुत्व व सहृदयता की भावना का सशक्तीकरण हज का महत्वपूर्ण पाठ है। इस पटल पर दूसरों से झगड़ना या कड़े स्वर में बात करना भी वर्जित है। समान पोशाक, समान संस्कार, समान क्रियाएं और प्रेमपूर्ण व्यवहार यहां उन समस्त लोगों की समानता और बंधुत्व के अर्थ में है जो एकेश्वरवाद के इस केन्द्र पर आस्था रखते हैं इसे दिल से चाहते हैं। यह उस विचार, आस्था और निमंत्रण पर इस्लाम का खुला हुआ उत्तर है जिसमें काबे और एकेश्वरवाद पर आस्था रखने वाले मुसलमानों के किसी भी समूह को इस्लाम के दायरे से बाहर घोषित किया जाता है। दूसरों को काफ़िर कहने वाले तकफ़ीरी तत्व जो आज धोखेबाज़ ज़ायोनियों और उनके पश्चिमी समर्थकों की राजनीति का खिलौना बनकर भयानक अपराध कर रहे हैं और मुसलमानों तथा निर्दोषों का ख़ून बहा रहे हैं और धर्मबद्धता के दावे करने वाले तथा धर्मगुरुओं का वस्त्र धारण कर लेने वाले तत्व जो शीया सुन्नी आदि विवादों की आग भड़का रहे हैं यह जान लें कि स्वयं हज के संस्कार उनके दावे को ग़लित साबित करने वाले हैं।
इस्लाम के बहुत से धर्मगुरुओं तथा मुस्लिम जगत के शुभचिंतकों की भांति मैं भी एक बार फिर यह घोषणा करता हूं कि मुसलमानों के बीच मतभेद की आग भड़काने वाली हर बात और हर कर्म, इसी प्रकार मुस्लिम समुदायों में किसी की भी धार्मिक आस्थाओं का अपमान अथवा किसी भी मुस्लिम समुदाय को काफ़िर ठहराना नास्तिकता एवं अनेकेश्वरवाद के मोर्चे की सेवा, इस्लाम से विश्वासघात और धार्मिक दृष्टि से हराम है।
शत्रु तथा उसकी चालों को पहचानना दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है। सबसे पहली बात यह है कि द्वेषपूर्ण शत्रु के अस्तित्व को कभी भूलना और उपेक्षित नहीं करना चाहिए। हज में शैतान के प्रतीकों को पत्थर मारने के संस्कार रमिए जमरात का कई बार दोहराया जाना इस स्थायी मानसिक सतर्कता का प्रतीकात्मक चिन्ह है। दूसरे यह कि प्रमुख शत्रु की पहचान में जो इस समय यही अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्यवादी मोर्चा और अपराधी ज़ायोनी नेटवर्क है, कभी ग़लती नहीं करनी चाहिए। तीसरी बात यह है कि इस कट्टर शत्रु की चालों को जो मुसलमानों के बीच फूट डालने, राजनैतिक व नैतिक भ्रष्टाचार फैलाने, मेधावियों को डराने और लुभाने, राष्ट्रों पर आर्थिक दबाव डालने तथा इस्लामी मान्यताओं और आस्थाओं के बारे में संदेह उत्पन्न करने में चरितार्थ होती हैं, भलीभांति पहचानना चाहिए तथा उनसे जुड़े तत्वों एवं जाने या अनजाने में उनके मोहरे बन जाने वालों को इसी मार्ग से जान लेना आश्यक है।
साम्राज्यवादी सरकारें और उनमें सबसे आगे अमरीका, व्यापक व आधुनिक संचार माध्यमों की सहायता से अपने असली चेहरे को छिपा लेते हैं तथा मानवाधिकार और लोकतंत्र के समर्थन के दावे के साथ देशों के जनमत के समक्ष धूर्ततापूर्ण क्रियाकलाप पेश करते हैं। वे ऐसी स्थिति में राष्ट्रों के अधिकारों का दम भरते हैं कि जब मुस्लिम राष्ट्र हर दिन अपने शरीर और मन पर उनके षडयंत्रों की आग की जलन का पहले से अधिक आभास कर रहे हैं। पीड़ित फ़िलिस्तीनी राष्ट्र पर एक दृष्टि जो दसियों साल से हर दिन ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों के अपराधों के ज़ख़्म खा रहा है, या अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और इराक़ पर एक दृष्टि जहां साम्राज्यवाद तथा इस क्षेत्र में उसके एजेंटों की नीतियों से जन्म लेने वाले आतंकवाद ने राष्ट्रों के जीवन को नरक बना दिया है, या सीरिया पर एक दृष्टि जिसे ज़ायोनी विरोधी प्रतिरोध आंदोलन का साथ देने के अपराध में अंतर्राष्ट्रीय वर्चस्ववादियों और उनके क्षेत्रीय मोहरों के द्वेषपूर्ण प्रहारों का केन्द्र बना दिया गया है और रक्तरंजित गृह युद्ध की आग में ढकेल दिया गया है, या बहरैन अथवा म्यांमार पर एक दृष्टि जहां अलग अलग रूप में पीड़ित मुसलमानों की उपेक्षा और उनके शत्रुओं की सहायता की जा रही है। या दूसरे राष्ट्रों पर एक दृष्टि जिनको अमरीका और उसके घटकों की ओर से लगातार सैनिक आक्रमण, आर्थिक प्रतिबंध या सुरक्षा के क्षेत्र की विध्वंसक कार्यवाहियों से धमकाया जा रहा है, वर्चस्ववादी व्यवस्था के इन सरग़नाओं का असली चेहरा सबको दिखा सकती है।
समूचे इस्लामी जगत की राजनैतिक, आर्थिक और धार्मिक हस्तियों को चाहिए कि स्वयं को इन तथ्यों के रहस्योदघाटन के लिए प्रतिबद्ध समझें। यह हम सब का धार्मिक और नैतिक दायित्व है।
उत्तरी अफ़्रीक़ा के देश जो दुर्भाग्यवश इन दिनों गहरे आंतरिक मतभेदों की लपेट में हैं, दूसरों से बढ़कर इस महान दायित्व अर्थात शत्रु की पहिचान और उसकी चालों व शैलियों की जानकारी पर ध्यान दें। राष्ट्रीय धड़ों के बीच मतभेदों का जारी रहना और इन देशों के बीच गृहयुद्ध छिड़ जाने के ख़तरे की उपेक्षा, बहुत बड़ा ख़तरा है जिससे पहुंचने वाले नुक़सान की जल्दी भरपाई नहीं हो पाएगी।
अलबत्ता हमें इस बारे में कोई संदेह नहीं है उन क्षेत्रों की आंदोलनकारी जनता जहां इस्लामी जागरूकता चरितार्थ हो चुकी है, ईश्वर की आज्ञा से इस बात का अवसर नहीं देगी कि समय की सूई पीछे की ओर घूमने लगे और भ्रष्ट, पिट्ठू और तानाशाह शासकों का युग फिर से लौट आए किंतु विवाद फैलाने और विनाशकारी हस्तक्षेप से संबंधित साम्राज्यवादी शक्तियों की भूमिका की ओर से निश्चेतना उसके काम को कठिन बना देगी तथा सम्मान, सुरक्षा व कल्याण के युग को वर्षों के लिए स्थगित कर देगी। हम राष्ट्रों की क्षमताओं और आम जनमानस की इच्छशक्ति, ईमान और तत्वदर्शिता में तत्वदर्शी ईश्वर की ओर से निर्धारित की गई शक्ति पर हृदय की गहराइयों से विश्वास रखते हैं और इसे हम तीन दशकों से भी पहले इस्लामी गणतंत्र ईरान में अपनी आंख से देख चुके हैं और अपने पूरे अस्तित्व से इसका अनुभव कर चुके हैं। हमारी इच्छा, सभी मुस्लिम राष्ट्रों को इस गौरवशाली व दृढ़ देश में रहने वाले उनके भाइयों के अनुभवों से लाभ उठाने का निमंत्रण देना है।
महान ईश्वर से सभी मुसलमानों के कल्याण और शत्रुओं की चालों की विफलता की प्रार्थना करता हूं और ईश्वर के घर के आप सभी हाजियों के लिए क़ुबूल होने वाले हज, शरीर व आत्मा की सुरक्षा तथा अध्यात्म से भरे ख़ज़ाने की दुआ करता हूं।
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह
सैयद अली ख़ामेनई