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तफ़्सीर और मुफ़स्सिरों का परिचय / 12

रूह अल-मआनी; सबसे तफ्सीली सुन्नी तफ़्सीर

11:37 - January 23, 2023
समाचार आईडी: 3478428
रूह अल-मआनी सबसे तफ्सीली तफ़्सीर है और सुन्नियों के बीच अपनी तरह की सबसे व्यापक तफ़्सीर है। यह तफ़्सीर ईमानदारी से पिछली तफ़्सीरों को अभिव्यक्त करती है और अपने हैं पहली तफ़्सीरों का ख़ुलासा मानी जाती है।
रूह अल-मआनी सबसे तफ्सीली तफ़्सीर है और सुन्नियों के बीच अपनी तरह की सबसे व्यापक तफ़्सीर है। यह तफ़्सीर ईमानदारी से पिछली तफ़्सीरों को अभिव्यक्त करती है और अपने हैं पहली तफ़्सीरों का ख़ुलासा मानी जाती है। इकना के अनुसार, महमूद बिन अब्दुल्ला अलौसी द्वारा रचित "रूह अल-मआनी फी तफ़सीर अल-कुरान अल-अज़ीम व अल-सबा अल-मसानी" अरबी में सुन्नियों की लंबी और बड़ी तफ़्सीरों में से एक है। "रूह अल-मआनी" एक अक़ली और इजतेहादी तफ़्सीर है और अदबी तरीके को अपनाती है। अलूसी की तफ़्सीर सबसे व्यापक तफ़्सीर है जो पुराने ढंग से फख़रे राज़ी की तफ़्सीर के बाद लिखी गई है। और यह कहा जा सकता है कि यह राज़ी तफ़्सीर का दूसरा नुस्खा है, परन्तु थोड़े से परिवर्तन के साथ सोलह खण्डों में प्रकाशित हुआ। यह तफ़्सीर एक लंबा और मुफस्सल तफ़्सीरी विश्वकोश है जो तफ़्सीर के दायरे और सीमाओं से लगभग परे है। लेखक के बारे में अबू अल-सना सैय्यद महमूद शहाबुद्दीन आफेंदी (1217-1270 AH/1854-1802 AD) बगदाद के एक फ़क़ीह, मुफ़स्सिर, लेखक और धार्मिक आलिम थे। सैय्यद महमूद ने बचपन से ही अपने पिता और अरबी अदब के उलमा के एक समूह के साथ अध्ययन किया था, और अपनी बुद्धिमत्ता और मजबूत ज़िहानत और हाफ़ज़े के कारण, वह ज्ञान प्राप्त करने में आगे बढ़ते चले गए। वह जल्द ही महान उस्तादों में से एक बन गए और उन्हें "अल्लामा" उपनाम दिया गया। वह, जो एक शफेई मज़हब थे, 1832 ईस्वी में अन्य मज़हबों के फ़िक़्ही ज्ञान के कारण, और शायद अबू हनीफा की राय के प्रति झुकाव के कारण हनफी संप्रदाय के मुफ्ती बन गये। लेखक का मक़सद अलौसी अपनी तफ़्सीर के मुक़दमे में लिखते हैं कि बचपन से ही उन्होंने कुरान के राज़ों को खोजने की कोशिश की और इसके लिए अल्लाह से दुआ की। उन्होंने बचपन और उसके खेल, साथ ही जवानी और उसकी उमगों को छोड़ दिया और इस विचार में व्यस्त थे। उन्होंने अपनी जवानी की उम्र को कुरान का भुताला करने में बिताया यहां तक कि अल्लाह ने उन्हें यह अवसर दिया और 20 वर्ष की आयु से पहले, उन्होंने कुरान से संबंधित प्रश्नों के बारे में "दक़ाईक़ अल-तफ़सीर"को लिखा। उन्होंने 43 साल की उम्र में तफ़्सीर लिखना शुरू की और 1850 ई. में इसे समाप्त कर दिया और इसे "रूह अल-मआनी फी तफ़सीर अल-कुरान अल-अज़ीम वा अल-सबा अल-मसनी" नाम दिया। "रूह अल-मआनी" तफ़सीर की विशेषताएं रूह अल-मआनी सबसे तफ्सीली तफ़्सीर है और सुन्नियों के बीच अपनी तरह की सबसे व्यापक तफ़्सीर है। यह तफ़्सीर ईमानदारी से पिछली तफ़्सीरों को अभिव्यक्त करती है और अपने हैं पहली तफ़्सीरों का ख़ुलासा मानी जाती है। अलौसी ने इब्ने अतिय्यह, अबू हय्यान, कश्शाफ़, अबू अल सऊद, बेज़ावी, फख्रे राज़ी और अन्य जैसे कई उलमा की तफ़्सीरों से फायदा उठाया है, और उनके विचारों को ज़िक्र करते हुए, उन्होंने उनके विचारों की आलोचना भी की है। उन्होंने फख़रे राज़ी से सबसे अधिक लाभ उठाया और कहीं कहीं राज़ी के लेखों के कुछ हिस्सों की आलोचना भी की है।
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