उस्ताद अहमद मोहम्मद आमिर मिस्र के प्रमुख क़ारियों में से एक थे जिन्होंने अपनी मृत्यु से पहलए 88 वर्ष की आयु में भी पूरी ताक़त और बहुत ही पुर्कशिश ढंग से तिलावत की।
इकना के अनुसार; अहमद आमिर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जिन में सब के सब कुरान वाले थे; ऐसे में उनके पिता मजबूत क़ारियोन में से एक थे और उनके दादा भी पूरे कुरान के हाफ़िज़ थे। अहमद आमिर का परिवार चार साल की उम्र से ही उन्हें कुरान हिफ्ज़ कराने में लग गया था और वह ग्यारह साल की उम्र में पूरे कुरान को हिफ़्ज करने में कामयाब हो गये थे।
अहमद आमिर का जन्म 1306 में मिस्र में हुआ था और वह 89 वर्ष तक जीवित रहे। यह बड़ा दिलचस्प है कि 13 साल की उम्र में, उन्होंने आसानी से तिलावत की और क़िराअत और तजवीद के नियमों को अच्छी तरह से जानते थे। शुरु में, उन्होंने उस्ताद अब्दुल फत्ताह शाशाई के अंदाज़े तिलावत को अपनाया था।
दिलचस्प बात यह है कि जिस गाँव में अहमद आमिर रहते थे, वहाँ के लोगों ने उन्हें 13 साल की उम्र से ही उस्ताद का लक़ब दे दिया था और वे उन्हें जीवन के अंत तक उस्ताद कहते थे।
अहमद आमिर ने कम उम्र में कुरान सीखने के बारे में कहा कि तजवीद के नियमों को सीखने के बाद, वह कुरान पढ़ने के विभिन्न तरीकों को सीखने गए और इन तरीकों से परिचित हो गए।
मिस्र रेडियो में अहमद आमिर के प्रवेश के बारे में अलग-अलग नज़रिए हैं; क्योंकि कुछ का मानना है कि उन्होंने 1956 में रेडियो में प्रवेश किया और अन्य का मानना है कि उन्होंने 1963 में रेडियो में प्रवेश किया। वास्तव में, दोनों राय सही हैं। 1956 में टेस्ट पैनल में उनका इम्तेहान लिया गया और रेडियो पर सुनाने की अनुमति मिल गई, लेकिन उस समय युद्ध के दौरान रेडियो मिस्र की इमारत पर बमबारी के कारण रेडियो की गतिविधियों को बन्द कर दिया गया था। इस कारण उन्होंने रेडियो पर पहली तिलावत 17 नवंबर 1963 को की थी।
अहमद आमिर ने 1958 में खलील अल हस्री और अब्दुल हकीम के साथ सूडान की अपनी पहली विदेश यात्रा की। बाद में, उन्होंने बहरीन, भारत, यमन, ईरान और सीरिया जैसे अन्य देशों की भी यात्रा की और कई सुंदर तिलावतों को यादगार छोड़ा।
अहमद मुहम्मद आमिर की आवाज उन सबसे मजबूत आवाजों में से एक है जो अब तक मिस्री क़ारियों से सामने आई है। 88 साल की उम्र में भी उन्होंने पूरी ताकत से तिलावत की। हां, यह कहा जा सकता है कि उन्होंने स्वतंत्र रूप से एक विशेष अनदाज़ पेश नहीं किया और अपने पढ़ने के अंदाज़ में मुस्तफा इस्माइल की पैरवी की।