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कुरान क्या है? / 27

एक ऐसा सेनापति जो कभी अपने सैनिकों को असफलता का मुँह नहीं दिखाता

11:16 - September 01, 2023
समाचार आईडी: 3479726
तेहरान (IQNA) एक विशिष्ट सेनापति है जिसने न केवल किसी से हार नहीं खाई, बल्कि अपने द्वारा एकत्र किए गए सैनिकों को भी विफल नहीं होने दिया। वह दुनिया के सभी हिस्सों में मौजूद है और हमेशा सैनिकों की परवरिश करता है। यह सेनापति कौन है और यह एक ही समय में हर जगह कैसे हाज़िर हो सकता है?

पूरे इतिहास में, कई योद्धाओं और सैन्य लोगों ने दुनिया में कदम रखा है और अपने लक्ष्य के रास्ते पर सम्मान जीता है। आमतौर पर किसी सैन्य चरित्र का ओहदा बड़े और निर्णायक युद्धों में हार या जीत से मापा जाता है। यह तथ्य कि पूरी दुनिया में एक सेनापति है और वह हारा नहीं है, यह दुनिया के आश्चर्यों में से एक है।

 

अमीरुल मोमिनीन, इमाम अली (अ.स.) ने नहज अल-बालागाह में कुरान का वर्णन किया और कहा: 

"عِزّاً لَا تُهْزَمُ أَنْصَارُهُ وَ حَقّاً لَا تُخْذَلُ أَعْوَانُهُ; 

यह एक ऐसी शक्ति है जिसके मददगार असफल नहीं होते, और यह ऐसा हक़ है कि इसके मददगार हारते नहीं हैं” (नहज अल-बालाग़ह: ख़ुत्बा 198)।

 

अब सवाल यह उठता है कि अमीर अल-मोमिनीन (अ.स.) यह बयान कैसे दे सकते हैं, जबकि आप आयते ततहीर का एक उदाहरण हैं और किसी भी मामले में वह सच्चाई के अलावा कुछ नहीं कहते हैं, जबकि यह हमारे लिए स्पष्ट है कि कुछ युद्धों में मुसलमान हार गए थे। उदाहरण के लिए, इस्लाम के आरंभ में उहुद का युद्ध, जिसमें मुसलमान किसी प्रकार पराजित हो गये।

 

इस प्रश्न के लिए जिस उत्तर पर विचार किया जा सकता है वह यह है कि:

 

सबसे पहले, यह प्रश्न और यहां तक ​​कि उच्च स्तर के प्रश्न अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की इस्मत और अचूकता पर धूल नहीं डालते हैं। 

 

दूसरे, कुरान का अर्थ अपने सैनिकों और साथियों को असफलता से दोचार न करना इस शर्त है जुड़ा हो सकता है कि मुसलमान कुरान का पालन करें और केवल इस्लाम का जाहेरी रूप न अपनाएं। वरना असफलता पक्की है। उदाहरण के लिए, हमारे पास कुरान में एक आयत है जिसमें कहा गया है कि लोगों को अल्लाह और उसके नबी का पालन करना चाहिए और उनके आदेशों की अवज्ञा नहीं करनी चाहिए। इस नियम का पालन न करने के कारण जंगे ओहद में मुसलमानों की हार हुई और उन्हें बहुत हानि उठानी पड़ी। यह ज़ाहिर है कि यह हार नहीं होती अगर तीरंदाज़ों ने ग़नीमत के लालच में अपना ड्यूटी स्थान नहीं छोड़ा होता (सूरह अल-इमरान की आयतों के तहत उहुद की लड़ाई की कहानी पढ़ें)। 

 

तीसरे यह कि इन विफलताएं ज़ाहरी और दुनियावी हैं और यह असली हार नहीं है। और इन विफलताओं से कुरान की और इस्लाम की सच्चाई खत्म नहीं हो जाती है क्योंकि अल्लाह ने स्वयं कुरान में कहा है: 

  « يَقُولُونَ لَوْ كاَنَ لَنَا مِنَ الْأَمْرِ شىَ‏ءٌ مَّا قُتِلْنَا هَهُنَا قُل لَّوْ كُنتُمْ فىِ بُيُوتِكُمْ لَبرَزَ الَّذِينَ كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقَتْلُ إِلىَ‏ مَضَاجِعِهِمْ وَ لِيَبْتَلىِ‏ اللَّهُ مَا فىِ صُدُورِكُمْ وَ لِيُمَحِّصَ مَا فىِ قُلُوبِكُمْ ؛ 

 

वे कहते हैं: यदि हम विजय में भागीदार होते, तो हम यहाँ मारे न जाते! कहो: यदि तुम अपने घरों में होते तो जो लोग क़त्ल होने वाले थे वे अवश्य अपनी आरामगाहों की ओर निकल आते (और उन्हें मार डालते)। और ये इस लिये है कि वह परखे कि तुम ने अपने सीनों में क्या छिपा रखा है; और जो कुछ तुम्हारे दिलों में (ईमान) है उसे पवित्र करे (अल-इमरान: 154)

 

नतीजतन, यह स्पष्ट है कि यदि मुसलमान कुरान की हुक्म का पालन करते हैं, तो वे हमेशा विजयी होंगे, और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा। कभी-कभी अल्लाह के पास इन विफलताओं का एक उद्देश्य होता है और वह इनके माध्यम से मुसलमानों की परीक्षा लेना चाहता है। इस मामले में, यदि मुसलमान सब्र रखें और लगे रहें, तो अंतिम जीत उनकी होगी।

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