قُلْ مَنْ يُنَجِّيكُمْ مِنْ ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ تَدْعُونَهُ تَضَرُّعًا وَخُفْيَةً لَئِنْ أَنْجَانَا مِنْ هَذِهِ لَنَكُونَنَّ مِنَ الشَّاكِرِينَ63
कहो, कौन तुम्हें थल और जल के अन्धकार से बचाएगा? जबकि तुम गुप्त रूप से उससे यह कहते हुए प्रार्थना करते हो कि, "यदि वह हमें इस बार इस संकट से बचा ले, तो हम निःसंदेह उसके आभारी होंगे।"
قُلِ اللَّهُ يُنَجِّيكُمْ مِنْهَا وَمِنْ كُلِّ كَرْبٍ ثُمَّ أَنْتُمْ تُشْرِكُونَ ﴿64﴾
कह दो, "अल्लाह ही है जो तुम्हें इन संकटों और विपत्तियों से बचाता है, किन्तु तुम भूल जाते हो और दूसरों को उसका साझी ठहराते हो।"
सूरा अल-अन'आम
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