إِنْ تَكْفُرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنْكُمْ وَلَا يَرْضَى لِعِبَادِهِ الْكُفْرَ وَإِنْ تَشْكُرُوا يَرْضَهُ لَكُمْ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ مَرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ ﴿۷﴾
अगर तुम अल्लाह की नेमतों को झुठलाते हो, तो जान लो कि अल्लाह तुम्हारी हर ज़रूरत से आज़ाद है, लेकिन वह अपने बंदों के लिए नाशुक्री पसंद नहीं करता। और अगर तुम शुक्रगुज़ार हो, तो वह तुम्हारे लिए भी उसे पसंद करता है। जान लो कि कोई किसी का बोझ नहीं उठा सकता, और तुम सबका आख़िरकार तुम्हारे रब की ओर लौटना है, ताकि वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों से अवगत करा दे। निस्संदेह, वह दिलों में जो कुछ है, उससे वाकिफ़ है।
सूरा अज़-ज़ुमर की आयत 7
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