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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई का हज संदेश

21:11 - July 29, 2020
समाचार आईडी: 3475003
तेहरान (IQNA) सारी प्रशंसा ब्रह्मांड के पालनहार ईश्वर के लिए है और प्रलय तक ईश्वर का दुरूद व सलाम हो हज़रत मुहम्मद, उनके पवित्र परिजनों और उनके चुने हुए साथियों पर और उन पर जो भलाई के साथ उनका अनुसरण करे।

बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम

सारी प्रशंसा ब्रह्मांड के पालनहार ईश्वर के लिए है और प्रलय तक ईश्वर का दुरूद व सलाम हो हज़रत मुहम्मद, उनके पवित्र परिजनों और उनके चुने हुए साथियों पर और उन पर जो भलाई के साथ उनका अनुसरण करे।

 

हज का मौसम, जो हमेशा ही इस्लामी जगत के लिए सम्मान, महानता और निखरने की भावना का मौसम था, इस साल मोमिनों के लिए दुख व खेद और चाहने वालों के लिए विरह और विफलता की भावना में डूबा हुआ है। काबे से दूरी के कारण सभी के दिलों में विरह की भावना है और हज न कर पाने वालों की पुकार, आंसुओं और आहों से भरी हुई है। यह वचिंतता थोड़े समय की है और ईश्वर की मदद व उसकी शक्ति से बहुत दिनों तक जारी नहीं रहेगी लेकिन इसका पाठ, जो हज की महान अनुकंपा का मूल्य समझना है, स्थायी होना चाहिए और उसे हमें निश्चेतना से मुक्त कराना चाहिए। काबे के पास, पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम) के रौज़े और (मदीने के) बक़ी (नामक क़ब्रिस्तान में दफ़्न) इमामों के क़रीब मोमिनों के विविधतापूर्ण और व्यापक जमावड़े में इस्लामी जगत की महानता व उसकी शक्ति के राज़ को इस साल हमेशा से ज़्यादा महसूस करने और उसके बारे में सोचने की ज़रूरत है।

 

हज एक बेजोड़ उपासना है, यह इस्लाम की अनिवार्य उपासनाओं के बीच सैकड़ों पंखुड़ियों वाला फूल है, मानो यह तय पाया है कि धर्म के सभी अहम व्यक्तिगत व सामाजिक, ज़मीनी व आसमानी, ऐतिहासिक व सांसारिक पहलुओं को इसमें दोबारा दोहराया जाए। इसमें अध्यात्म है लेकिन एकांतवास और दुनिया को तजे बिना। इसमें लोगों का एकत्रित होना है लेकिन हर तरह के टकराव, अपशब्द और दूसरों का बुरा चाहे बिना। एक ओर प्रार्थना, दुआ और ईश्वर की याद है तो दूसरी ओर लोगों से संबंध, मेल-जोल और संपर्क भी है। हाजी एक तरफ़ तो इतिहास से, इब्राहीम, इस्माईल, व हाजेरा से, पैग़म्बरे इस्लाम के विजयी हो कर मस्जिदुल हराम में ईश्वर के पैग़म्बर के प्रवेश से और इस्लाम के आरंभिक काल के अत्यधिक मोमिनों से अपने पुराने रिश्ते को देखता है तो दूसरी तरफ़ अपने समय के असंख्य मोमिनों को देखता है जिनमें से हर एक सहयोग और ईश्वर की रस्सी को सार्वजनिक रूप से मज़बूती से थामने के लिए एक हाथ हो सकता है।

हज के बारे में सोचने व चिंतन करने से हाजी इस निश्चित परिणाम तक पहुंचता है कि इंसानियत के लिए धर्म की बहुत सी आशाएं व उमंगें, धर्म के सभी मानने वालों के आपसी सहयोग, समरसता व एकजुटता के बिना पूरी नहीं हो सकतीं और इस समरसता व एकजुटता के अस्तित्व में आने से दुश्मनों व बुरा चाहने वालों की चालें, इस राह में कोई अहम समस्या पैदा नहीं कर सकतीं।

हज, उन साम्राज्यवादियों के मुक़ाबले में शक्ति का प्रदर्शन है जो भ्रष्टाचार, अत्याचार, कमज़ोरों को मारने और लूटमार का केंद्र हैं और आज इस्लामी समुदाय का शरीर व उसकी आत्मा उनके अत्याचार व दुष्टता से दुखी व रक्तरंजित है। हज, इस्लामी समुदाय की प्रत्यक्ष व निहित क्षमताओं का प्रदर्शन है। यह, हज की प्रकृति, हज की जान और हज के सबसे अहम लक्ष्यों का एक भाग है। यह वही है जिसे महान इमाम ख़ुमैनी ने इब्राहीमी हज का नाम दिया और यह वही है कि अगर हज के मामलों के संचालनकर्ता, जो अपने आपको ख़ादिमे हरमैन अर्थात मक्के व मदीने के पवित्र स्थलों का सेवक कहते हैं, पूरी सच्चाई व निष्ठा के साथ उसके सामने सिर झुका दें और अमरीकी सरकार को ख़ुश करने के बजाए ईश्वर को ख़ुश करने का चयन करें तो, इस्लामी जगत की बड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

आज भी हमेशा की तरह बल्कि हमेशा से बढ़ कर इस्लामी समुदाय का अनिवार्य हित, एकता में है, वह एकता जो ख़तरों और दुश्मनियों के मुक़ाबले में एक एकजुट हाथ अस्तित्व में लाती है और साक्षात शैतान, अतिक्रमणकारी व धोखेबाज़ अमरीका व उसके ज़ंजीर से बंधे हुए कुत्ते ज़ायोनी शासन के सामने दहाड़ती है और ज़ोर-ज़बरदस्ती के सामने पूरे साहस के साथ तन कर खड़ी हो जाती है। यही ईश्वरीय आदेश का अर्थ है जिसने कहा हैः “सब मिल कर ईश्वर की रस्सी को मज़बूती से थाम लो और आपस में फूट न पड़ने दो।“ [1] क़ुरआने मजीद इस्लामी समुदाय का “काफ़िरों पर कड़े और आपस में दयावान”[2] के परिप्रेक्ष्य में परिचय कराता है और उससे “अत्याचारियों की तरफ़ ज़रा भी न झुको”[3], “ईश्वर ने मोमिनों पर काफ़िरों के वर्चस्व की हरगिज़ कोई राह नहीं रखी है“[4], “काफ़िरों के सरग़नाओं से लड़ो”[5] और “मेरे व अपने दुश्मनों को दोस्त न बनाओ”[6] जैसी ज़िम्मेदारियों का पालन चाहता है और दुश्मन को स्पष्ट व निर्धारित करने के लिए यह आदेश देता है कि “ईश्वर तुम्हें उन लोंगों के साथ भला व न्याय का व्यवहार करने से नहीं रोकता जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध नहीं किया और तुम्हें तुम्हारे घर-बार से नहीं निकाला।“[7] इन अहम व निर्णायक आदेशों को किसी भी स्थिति में हम मुसलमानों के विचारों व मान्यताओं से न तो दूर होना चाहिए और न ही भुलाया जाना चाहिए।

इस्लामी समुदाय और उसके हमदर्द व हितैषी बुद्धिजीवियों के सामने आज हमेशा से ज़्यादा इस परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त है। आज अपनी आध्यात्मिक पूंजियों पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों व युवाओं के ध्यान के अर्थ में इस्लामी जागरूकता एक ऐसी सच्चाई है जिसका कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। आज लिब्रलिज़म और कम्यूनिज़म, जो सौ साल और पचास साल पहले पश्चिमी सभ्यता के सबसे अहम तोहफ़े समझे जाते थे, पूरी तरह से नज़रों से गिर चुके हैं और उनकी अक्षम्य कमियां स्पष्ट हो गई हैं। इनमें से एक पर आधारित व्यवस्था बिखर चुकी है और दूसरे पर आधारित व्यवस्था भी गहरे संकटों में जकड़ी हुई है और बिखरने ही वाली है।

आज न केवल पश्चिम की संस्कृति का आदर्श, जो शुरू से ही अपमानजनक तरीक़े से मैदान में आया था, बल्कि उसकी राजनीति व अर्थव्यवस्था का आदर्श भी यानी पैसों पर आधारित प्रजातंत्र और सामाजिक अंतरों व भेदभाव वाला पूंजीवाद भी अपनी अयोग्यता व भ्रष्टाचार को स्पष्ट कर चुका है।

आज इस्लामी जगत में ऐसे बुद्धिजीवी कम नहीं हैं जो सिर उठा कर पूरे गर्व के साथ पश्चिम के सभ्यता संबंधी सभी दावों पर सवाल खड़े करते हैं और उनके इस्लामी विकल्पों को खुल कर बयान करते हैं। आज पश्चिम के कुछ बुद्धिजीवी भी, जो इससे पहले घमंड के साथ लिब्रलिज़म को इतिहास का अंत बताते थे, मजबूरन अपने दावे को वापस लेकर वैचारिक व व्यवहारिक मैदान में अपने अधर में होने की बात मान रहे हैं। अमरीका की सड़कों, अपनी जनता के साथ अमरीकी अधिकारियों के रवैये, इस देश में सामाजिक अंतर की गहरी खाई, देश के संचालन के लिए चुने जाने वालों की तुच्छता व मूर्खता, इस देश में भयावह नस्लवाद और एक सड़क पर लोगों की नज़रों के सामने एक ग़ैर अपराधी को पूरी निर्दयता के साथ यातनाएं देकर मारने वाले एक पुलिसकर्मी की निर्दयता पर एक नज़र डालने से ही पश्चिमी सभ्यता के नैतिक व सामाजिक संकट की गहराई और उसके राजनैतिक वा आर्थिक दर्शन के ग़लत व टेढ़ेपन का पता चल जाता है। कमज़ोर राष्ट्रों के साथ अमरीका का रवैया उस पुलिस के रवैया का ही एक बड़ा स्केल है जिसने अपना घुटना एक निहत्थे अश्वेत के गले पर रखा और इतना दबाया कि वह मर गया। पश्चिम की अन्य सरकारों में से भी हर एक अपनी शक्ति व संभावना के अनुसार इस त्रासद स्थिति के अन्य नमूने हैं।

इस आधुनिक अज्ञानता के मुक़ाबले में इब्राहीमी हज, इस्लाम का एक वैभवशाली नमूना है, यह इस्लाम की ओर निमंत्रण और इस्लामी समाज के जीवन का सांकेतिक प्रदर्शन है। वह समाज जिसमें एकेश्वरवाद के ध्रुव पर ईमान वालों का निरंतर मिल-जुल कर रहना सबसे बड़ी निशानी है, विवाद व टकराव से दूरी, भेदभाव व ठाठ-बाट वाली विशिष्टताओं से दूरी और भ्रष्टाचार व अनैतिकता से दूरी आवश्यक शर्त है, शैतान को कंकरी मारना, अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता, ग़रीबों से मेलजोल, ज़रूरतमंदों की मदद और ईमान वालों के नारों को बुलंद करना मुख्य ज़िम्मेदारियों में शामिल है, ईश्वर की याद, उसकी कृतज्ञता व उपासना के साथ सार्वजनिक हितों को हासिल करना, मध्य व अंतिम लक्ष्य हैं। यह इब्राहीमी हज के आईने में इस्लामी समाज की संक्षिप्त रूप रेखा है और बड़े बड़े दावे करने वाले पश्चिमी समाजों की सच्चाई से इसकी तुलना, हर हिम्मत वाले मुसलमान का दिल इस प्रकार के समाज तक पहुंचने के लिए प्रयास व संघर्ष के शौक़ से भर देती है।

हम ईरान के लोगों ने महान इमाम ख़ुमैनी के मार्गदर्शन व नेतृत्व में इसी शौक़ के साथ क़दम आगे बढ़ाया और सफल रहे। हम दावा नहीं करते कि जो कुछ हम जानते और पसंद करते हैं उन सबको व्यवहारिक बनाने में सफल रहे हैं लेकिन हम यह दावा करते हैं कि इस रास्ते पर हम काफ़ी आगे आ चुके हैं और रास्ते की बहुत सी रुकावटों को दूर कर चुके हैं। क़ुरआने मजीद के वादों पर विश्वास की बरकत से हमारे क़दम ठोस रहे हैं। इस समय का सबसे बड़ा लुटेरा व धोखेबाज़ शैतान यानी अमरीकी सरकार हमें न डरा सका है, न पराजित कर सका है, न धोखा दे सका है और न ही हमारी भौतिक व नैतिक प्रगति को रोक सका है।

हम सभी मुस्लिम राष्ट्रों को अपना भाई समझते हैं और दुश्मन मोर्चे में शामिल न होने वाले ग़ैर मुस्लिमों के साथ अच्छा व न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं। हम मुस्लिम समाजों के दुखों व समस्याओं को अपनी समस्याएं समझते हैं और उनके समाधान के लिए कोशिश करते हैं। पीड़ित फ़िलिस्तीन की मदद, यमन के घायल शरीर के लिए हमदर्दी और दुनिया के हर स्थान पर अत्याचारों में घिरे हुए मुसलमानों की चिंता को हम हमेशा दृष्टिगत रखते हैं और इसके लिए काम करते हैं। कुछ मुस्लिम देशों के राष्ट्राध्यक्षों को नसीहत करना हम अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं जो अपने मुसलमान भाई पर भरोसा करने के बजाए, दुश्मन की गोद में चले जाते हैं और अपने कुछ दिनों के निजी फ़ायदे के लिए दुश्मन की ओर से अपमान और तुच्छता सहन करते हैं, साथ ही अपने राष्ट्र के सम्मान व स्वाधीनता को नीलाम करते हैं, जो लोग अवैध क़ब्ज़ा करने वाले व अत्याचारी ज़ायोनी शासन की रक्षा चाहते हैं और खुल कर व छिप कर उससे दोस्ती का हाथ मिलाते हैं, हम उन्हें नसीहत करते हैं और इस रवैये के कटु परिणामों की ओर से सचेत करते हैं। हम पश्चिमी एशिया के क्षेत्र में अमरीका की उपस्थिति को इस इलाक़े के राष्ट्रों के नुक़सान में और देशों में अशांति, तबाही व पिछड़ेपन का कारण मानते हैं। अमरीका की इस समय की परिस्थितियों व इस देश में नस्लवाद के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन के संबंध में हमारी अटल नीति जनता के समर्थन और इस देश की नस्लवादी सरकार के जल्लादी रवैये की निंदा पर आधारित है।

अंत में इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर दुरूद व सलाम भेजते हैं, इमाम ख़ुमैनी को श्रद्धांजली अर्पित करते हैं और शहीदों की पवित्र आत्माओं पर दुरूद भेजते हैं और महान ईश्वर से दुआ करते हैं कि वह निकट भविष्य में इस्लामी समुदाय को सुरक्षित, पावन व स्वीकार्य हज प्रदान करे।

 

सैयद अली ख़ामेनेई

7 मुर्दाद हिजरी शम्सी 1399

28 जुलाई 2020

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