कामिल युसूफ़ का उनका जन्म "बेहतीम" गांव में हुआ था। उनके पिता गांव के क़ारियों में से एक थे।
मिस्र में कुरान की घटनाएं और पाठ के उत्कृष्ट आंकड़े ग्रामीण इलाकों से उभरे हैं और इन प्रतिभाओं को गांवों के साधारण वातावरण में खोजा जाता है। उस्ताद कामिल युसूफ़ भी उन पाठको की श्रेणी में हैं जिनकी प्रतिभा गाँव में खोजी गई है।
उनके पिता ने उन्हें छह साल की उम्र में कुरान पढ़ने के लिए पेश किया था। उन्होंने 10 साल की उम्र से पहले ही पूरा कुरान याद कर लिया था। उनका बचपन कुछ इस तरह बीता कि उन्हें धार्मिक गीतों का बहुत शौक था।
पाठ के अभ्यास ने उनकी उच्च कलात्मक क्षमताओं को प्रकट किया और हर कोई देख सकता था कि इस पाठक के आगे एक कैसा उज्ज्वल भविष्य है।
कामिल युसुफ़ अपनी किशोरावस्था में प्रोफेसर मोहम्मद अल-सैफ़ी से मिले और उनसे प्रभावित हुऐ। कामिल युसुफ़ में तक़लीद करने की इतनी उच्च शक्ति थी कि उनके करियर की शुरुआत में ही प्रोफेसर मोहम्मद अल-सैफ़ी ने महसूस किया कि कामिल यूसुफ़ में एक विशेष प्रतिभा है और वह इस अम्र में निवेश करने के लिए उत्सुक ऐ। कामिल युसूफ को पढ़ने के लिए काहिरा सहित मिस्र के विभिन्न शहरों में ले गऐ। यहीं से लोगों को कामिल युसूफ़ के बारे में पता चला। कामिल युसूफ़ ने शेख मोहम्मद रफअत और मोहम्मद सलामेह से फायदा उठाने की कोशिश की और उनके पाठ के तरीकों और शैलियों का इस्तेमाल किया।
मास्टर कामिल यूसुफ़ के पाठों के विकास में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि मिस्र के स्वर्ण युग में चमकने वाले अधिकांश पाठक सस्वर पाठ सम्मेलनों में शामिल हुए हैं और वहां सस्वर पाठ का प्रशिक्षण प्राप्त किया है, लेकिन मास्टर कामिल युसूफ़ ने केवल उन तीन आचार्यों के पाठों को सुना, जिनके नामों का उल्लेख किया गया है, पाठ को समझने और पाठ के तर्क तक पहुँचने और अच्छे पाठों को छोड़ने और शैली के स्वामी बनने में सक्षम है।