
इराकी उलमा और मराजे में से एक, अयातुल्ला सय्यद मोहम्मद तकी मुदर्रेसी द्वारा लिखी गई "मिन हुदा अल-क़ुरान: कुरान की हिदायत से" तफ़्सीर; पवित्र कुरान की इस ज़माने की तफ़्सीरों में से एक है, जिसे अठारह खंडों में संकलित किया गया है, और उस में सभी कुरान की आयतों पर सामाजिक और शैक्षिक ज़ाविये से बहस और चर्चा की गई है।
सैय्यद मोहम्मद काज़िम हुसैनी खुरासानी मुदर्रेस हाएरी के पुत्र, अयातुल्ला मोहम्मद तकी मुदर्रेसी (1945 ईस्वी में पैदा हुए), मौजुदा जमाने के शिया विचारकों, स्कालरों और लेखकों में से एक हैं, जिनका जन्म पवित्र शहर कर्बला में इलमी और फ़िक़्ही परिवार में हुआ था। अपने बचपन के बाद, उन्होंने धार्मिक विज्ञानों को हासिल किया और महान उलमा से लाभान्वित हुए, लेकिन वे धार्मिक विज्ञानों तक ही मह्दूद नहीं थे और अन्य विज्ञानों और ज्ञान को भी हासिल किया।
इस मुफ़स्सिर के पास हयूमिनिटीज़, फ़लसफ़ा, सूफ़ीस्म और पश्चिमी संस्कृति की आलोचना के क्षेत्र में विचार और राय हैं, और उनके कई मक़ाले और लेख इराक, ईरान और लेबनान में अरबी मैगजीन में प्रकाशित हुए हैं। वह होज़ाए इल्मिया के मशहूर उस्तादों में से एक हैं और उन्होंने आज की जरूरतों के अनुसार नए मनसूबों और योजना के माध्यम से होज़े में सुधार के लिए कदम उठाए हैं।
उनकी एक विशेषता उनके आवधिक भाषण हैं, जिन्हें उन्होंने विभिन्न अवसरों पर लोगों को संबोधित किया और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों के बारे में बताया और उनकी ताकत और कमजोरियों की ओर इशारा किया।
वह समय-समय पर होने वाले महत्वपूर्ण अवसरों और घटनाओं पर भी बोलते हैं और उस अवसर या घटना के संबंध में लोगों के विभिन्न समूहों के फ़र्ज़ को बताते हैं। सभी उल्लिखित मामलों के अलावा, उनके व्यापक वैज्ञानिक लेखन और तहक़ीक़, और सबसे ऊपर, "मिन हुदा अल-कुरान" की तफ़्सीर और अयातुल्ला मुदर्रेसी के इलमी किताबचों ने उन्हें विभिन्न सामाजिक और वैज्ञानिक समूह तवज्जो से देखते हैं। ।
तफ़्सीर की विशेषताएं
बात कहने और तफसीर में प्रवेश करने का तरीका यह है कि पहले वह आयतों के एक गिरोह का उल्लेख करते हैं और फिर उस गिरोह के पूरे संदेश को समझाने के बाद, वह आयतों के हिस्सों को अलग अलग समझाते हैं। आयत के प्रत्येक भाग को एक विषय और उनवान दिया गया है। लेखक ने तफ़्सीर के अक़ली और फ़ीक्री पहलुओं पर भरोसा किया और दूर की नज़रयों और असंभव बातों पर नहीं गये या कम गए हैं।
यह तफ़्सीर कुरानी आयतों का उपयोग करके उन्हें सामाजिक और शैक्षिक सच्चाइयों से जोड़ती है। पवित्र कुरान की तफ़्सीर और इसकी आयतों में ग़ौर व फ़िक्र इस कार्य का विशेष तरीक़ा है, और इसी तरीके से यह नतीजा निकालते हैं कि सामाजिक स्थिति के साथ कैसे व्यवहार किया जाए। इस तफ़्सीर में, लेखक ने उन पेचीदा मुद्दों को उठाने से भी खुद को दूर करने की कोशिश की है, जिनकी इस्लामी आंदोलन को आवश्यकता नहीं है। यही बात इस तफ़्सीर को एक विशेष विशेषता देती है जो इसे अन्य तफ़्सीरों से अलग करती है।
सामान्य तौर पर इस तफ़्सीर की गुणवत्ता और तारीफ़ में यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि इसमें एक विशेष और नया तरीका देखने को मिलता है। बातें एक ही समय में बहुत ही सादे और दिलनिशीन भी हैं, और मुनज़्ज़म और मुरत्तब भी हैं।
इसकी अरबी भी आज की अरबी, रवान, और अरबी दानों के लिए समझने के क़ाबिल है। साथ ही यह भी कोशिश की गई है कि दूसरों की तफ़्सीरों को न दोहराएं और अन्य मुफ़स्सिरों के विचारों को बयान न करें। इस तफ़्सीर की एक अन्य विशेषता यह है कि कुरान तरबियती पहलुओं को बयान करने के लिए मुफ़स्सिर नफ्सियाती तरीक़े का प्रयोग करता है। एक अन्य बात यह है कि लेखक कुरान की आयतों और मौजूदा ज़मीनी हक़ीक़त और इस्लामिक उम्माह की मौजूदा सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बीच एक मजबूत कड़ी बनाने की कोशिश करते हैं, और अपने कार्यों के लिए मनुष्य की जिम्मेदारी पर जोर देते हैं और ज़िम्मेदारी को स्वीकार करने का ज़िक्र करते हैं। ।
जैसा कि उल्लेख किया गया है, यह तफ़्सीर आयतों के अर्थों की व्याख्या और उसके आला मफ़हूम और मक़सद का बयान और समाज की पीड़ाओं के सफल और उपयोगी इलाज पर निर्भर करती है। इस तफ़्सीर के मतालिब नज़मो तरतीब के साथ आए हैं और रिवायती तफ़्सीर की तकनीकी और शैक्षणिक चर्चाएं कम हैं। इस कारण से, कुछ रावायतों का उल्लेख करने में भी, आयतों को बयान करना और कुरान की तरबियती और अख़लाक़ी रविश को वाज़ेह करना लेखक का मक़सद है।