
जब कोई पुकारने वाला ईश्वर में विश्वास की आवाज़ लगाता है, तो कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें इसमें अपना खोया हुआ मिल जाता है और उस आवाज़ की तरफ चल पड़ते हैं। यह रिश्ता ईमान वालों के बीच एकजुटता के लिए भगवान से दुआ का आधार बन जाता है।
कुरान की कुछ आयतें उन दुआओं को व्यक्त करती हैं जो नबियों और पवित्र लोगों द्वारा की गई थीं और "रब्बना ربنا" (हे हमारे भगवान) से शुरू होती हैं और वह विचारशील मोमिनों की ज़बान द्वारा अपने भगवान से अनुरोध करती हैं।
इनमें से एक आयत उन लोगों के शब्दों में है जिन्होंने ईमान का संदेश सुना है और उस पर विश्वास किया है। "सुन्ना" लोगों की रहनुमाई करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है, और कुछ मुफ़स्सिर इसे सबसे प्रभावी तरीका कहते हैं, देखने और सुनने से भी अधिक। «رَبَّنَا إِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِيًا يُنَادِي لِلْإِيمَانِ أَنْ آمِنُوا بِرَبِّكُمْ فَآمَنَّا رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَيِّئَاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الْأَبْرَارِ؛ हे ईश्वर, हमने एकेश्वरवाद के दूत की आवाज सुनी, जिसने हमें अपने अल्लाह पर ईमान लाने के लिए आमंत्रित किया, तो हम ईमान ले आए, (अब ऐसा है) हे ईश्वर, हमारे पापों को क्षमा कर दे, और हमें नेक लोगों के साथ (और उनके पथ पर) मौत दे! » (आले इमरान, 193)
मुफ़स्सिरों यानी टीकाकारों ने बहस छेड़ी है कि वह कौन है जिसने विश्वास की पुकार लगाई:
1- अधिकांश टिप्पणीकारों के अनुसार पुकारने वाले, पैगंबर हज़रत मुहम्मद हैं। صلّى اللّه عليه و آله و سلّم
2- इस से मुराद कुरान मजीद है, क्योंकि बहुत से लोगों ने पैगंबर की उपस्थिति नहीं सुनी, लेकिन सभी लोगों ने कुरान को सुना है, भले ही उन्होंने पैगंबर को नहीं देखा हो।
तफ़्सीरे नमूना में, हम पढ़ते हैं: समझदार लोग, कायनात के उद्देश्य को प्राप्त करने के बाद, यह भी महसूस करते हैं कि वे इलाही नुमाइंदों के बिना इस उतार-चढ़ाव के मार्ग पर कभी नहीं तै कर सकते। इसलिए, वे हमेशा ईमान के दूतों (विश्वास के निमंत्रणकर्ताओं) की आवाज़ सुनने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं और जैसे ही वे पहली आवाज़ सुनते हैं, वे उनकी ओर दौड़ पड़ते हैं, और वे अपने पूरे दिल से ईमान रखते हैं और अपने ईश्वर से कहते हैं: «हे ईश्वर, हमने एकेश्वरवाद के दूत की आवाज सुनी, जिसने हमें अपने अल्लाह पर ईमान लाने के लिए आमंत्रित किया, तो हम ईमान ले आए»।
लेकिन इन ईमान के तलशी और बुद्धिमान जो विश्वास की पुकार का जवाब देते हैं और इसे सुनते हैं, के मुकाबले में ऐसे लोग भी हैं जो इस आवाज़ को अनदेखा करते हैं और क़यामत के दिन अफसोस के साथ कहेंगे: «لَوْ كُنَّا نَسْمَعُ أَوْ نَعْقِلُ ما كُنَّا فِي أَصْحابِ السَّعِيرِ» अगर हम सुनते और समझते तो जहन्नम वालों में ना भेजे होते। (मुल्क/10)
तफ़सीरे नूर में आयत के संदेश:
1- ज्ञानी सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार रहते हैं, और प्रकृति की पुकार का जवाब देने के अलावा, वे नबियों, विद्वानों और शहीदों की पुकार का जवाब देते हैं। "हमने एक दूत को ईमान के लिए पुकारते हुए सुना है ...إِنَّنا سَمِعْنا مُنادِياً يُنادِي لِلْإِيمانِ "
2- क्षमा चाहना और एतेराफ अक़्ल की निशानी है।
3- प्रार्थना के तरीकों में से एक ईश्वरीय परवरिश की विशेषता पर ध्यान देना है जो ईश्वरीय क्षमा का आधार प्रदान करता है। «رَبَّنا فَاغْفِرْ لَنا»
4- ईमान अल्लाह की क्षमा और बख़्शिश प्राप्त करने का रास्ता है। «فَآمَنَّا، فَاغْفِرْ لَنا»
5- अपनी प्रार्थनाओं में दूसरों को साझा करें। «فَاغْفِرْ لَنا»
6- दुसरों की बुराईयों को छिपाना खुदाई परवरिश के पहलुओं में से एक है और तबियत के तरीकों में से एक है। «رَبَّنا ... كَفِّرْ عَنَّا»
7- मनुष्य की मृत्यु ईश्वर की इच्छा से होती है। «تَوَفَّنا»
8- बुद्धिमान और दूरदर्शी लोग अच्छे लोगों के साथ मरने की कामना करते हैं। «تَوَفَّنا مَعَ الْأَبْرارِ»
9- अच्छे और धर्मी के पास एक ऐसा पद होता है जिसकी बुद्धिमान इच्छा करते हैं। «لِأُولِي الْأَلْبابِ ... تَوَفَّنا مَعَ الْأَبْرارِ»