ओहदा तलब लोग अपनी शक्ति और सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लोगों की भावनाओं का दुरुपयोग करते हैं। पवित्र कुरान की कहानियों में इस विशेषता वाले लोगों की कहानियाँ हैं कि कैसे उन्होंने खुद को और दूसरों को गुमराही की आग में झोंक दिया।
व्यक्तियों और समाज पर बहुत खतरनाक प्रभाव डालने वाले नैतिक गुणों में से एक मानव ओहदा तलबी है। ओहदा तलब लोगों के दिलों में घुसना और उन्हें जीतना चाहता है। इस क्रिया को जो नकारात्मक पहलू देता है वह वह उद्देश्य है जिसके लिए कोई व्यक्ति इस क्रिया को करता है।
एक ओहदा तलब व्यक्ति का लक्ष्य है कि लोग सामाजिक पदों, विशेषकर सत्ता को प्राप्त करने के लिए उसकी पैरवी करें। जैसे अमीर लोग अपने धन का उपयोग अपने सांसारिक लक्ष्यों (सही या गलत) को प्राप्त करने के लिए करते हैं, वैसे ही ओहदा तलब व्यक्ति अपनी शक्ति और सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लोगों के दिल और भावनाओं का उपयोग करता है। पवित्र कुरान की कहानियों में इस विशेषता वाले लोगों की कहानियाँ भी हैं।
भले ही एक ओहदा तलब व्यक्ति के पास बहुत मजबूत सोच और तर्क शक्ति हो या लोगों पर शासन करने और हुकुमत करने की विशेषाधिकार प्राप्त नीति हो, फिर भी वह गलतियाँ करने से पाक नहीं है।
ओहदा तलब व्यक्ति क्योंकि आख़ेरत के मार्ग पर नहीं चलता और उसकी इच्छा का अंत सांसारिक जीवन तक पहुँचने में होता है, इस लिए उसके लोगों का शासक होने की वजह से, उसके दुनियावी निर्णय लोगों भी को प्रभावित करते हैं और उसके अपनी बर्बादी के साथ, वह दूसरों की बरबादी का भी कारण बन जाता है।
इमाम सादिक (अ.स.) इस कुरूप व्यवहार के प्रभाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं:
"ايَّاكُمْ وَ هؤلاءِ الرُّؤَساءِالَّذِين يَتَرأَّسُون فَوَاللّهِ ما خَفَفْتِ النِّعالُ خَلْفَ رَجُلٍ الّا هَلَكَ وَ اهْلَكَ"
ओहदा तलब दल से सावधान, अल्लाह की कसम, किसी के पीठ पीछे जूतों की आवाज नहीं सुनाई देगी, जब तक कि वह स्वयं नष्ट न हो और दूसरों को भी नष्ट न करे।
उस समय के दबे कुचले लोग अक्सर नंगे पाँव होते थे, और ऊँचे जूते सांसारिक और अमीरों के होते थे। रिवायत है श में इशारा है कि ऐसे लोग ईश्वर और रुमानियत के लिए किसी के पीछे नहीं चलते हैं, और यदि वे किसी में रुचि रखते हैं, तो यह निम्न सांसारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए है। ...
पवित्र क़ुरआन उन लोगों के नाम बताता है जिन्होंने इस पाप के कारण अपना और दूसरों का विनाश किया:
"وَ نادَى فِرْعَوْنُ فِى قَوْمِهِ قالَ يا قُومِ الَيْسَ لِى مُلْكُ مِصْرَ وَ هذِهِ الْانْهارُ تَجْرِى مِنْ تَحْتِى افَلا تُبْصِرُونَ- امْ انا خَيْرٌ مِنْ هذَا الَّذِى هُوَ مَهِيْنٌ وَ لا يَكادُ يُبِيْن"
फ़िरौन ने अपनी क़ौम के बीच ऊँचे स्वर में पुकार कर कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! क्या मिस्र का राज्य मेरा नहीं है, और ये नदियां जो मेरे अधीन बहती हैं? क्या तुम नहीं देखते?!- क्या ऐसा नहीं है कि मैं इस आदमी (मूसा) से बेहतर हूँ जो एक निचली जाति और वर्ग से है और कभी भी अच्छा नहीं बोल सकता है?" (ज़ुखरुफ: 51-52)
इस आयत में, फिरौन एक ही समय में अपने अहंकार और ओहदा तलबी को दिखाता है, और भले ही वह जानता था कि मूसा अलैहिस्सलाम हक़ पर थे, लेकिन क्योंकि वह ओहदा तलब था और शासन करना पसंद करता था, लिहाज़ा उसने लोगों को धोखा दिया कि "मैं (भगवान) हूं, क्योंकि मिस्र की सरकार मेरी है और ..."।
फिरौन ने खुद को और अपने साथियों को हमेशा की गुमराही की ओर अग्रसर किया:
"النَّارُ يُعْرَضُونَ عَلَيهَا غُدُوًّا وَ عَشِيًّا وَ يَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ أَدْخِلُواْ ءَالَ فِرْعَوْنَ أَشَدَّ الْعَذَاب"
उनका दण्ड वह अग्नि है जिसमें वे प्रतिदिन प्रात: और सायं अर्पण किए जाते हैं। और जिस दिन क़यामत क़ायम हो जाएगी (वह कहेगा:) फ़िरऔन के घराने को सख्त से सख्त अज़ाब में डाल दे।" (गाफ़िर: 46)