चूँकि अल्लाह दुनिया में सभी नेमतों का स्रोत है, इसलिए मनुष्य को अपनी इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए उससे प्रार्थना करनी चाहिए। धार्मिक किताबों के अनुसार, अल्लाह से प्रार्थना करने का सबसे अच्छा साधन और जरिया कुरान है।
माँगना किसी आवश्यकता को पुरा करने का एक साधन है। लेकिन इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि किससे और किस मंशा से पूछा जा रहा है? संसार में ईश्वर ही एकमात्र ऐसा है जो मनुष्य की सभी आवश्यकताओं से आगाह है और उनका इंतज़ाम करता है। ऐसा लग सकता है कि इंसान की समस्या का समाधान कोई और कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि ये लोग जो मानव कार्य की गुत्थियां सुलझाते हैं, वे अल्लाह का जरिया हैं, और यदि अल्लाह न चाहे, तो पृथ्वी पर सब लोग भी इस समस्या को हल नहीं कर पाएंगे। नहज अल-बलाग़ा में अमीर अल-मुमिनीन के ख़ुत्बे 176 में, इमाम अली (अ.स.) ने कुरान को अल्लाह से पूछने के एक जरिये के रूप में पेश किया:
فَاسْأَلُوا اللَّهَ بِهِ وَ تَوَجَّهُوا إِلَيْهِ بِحُبِّهِ
आप जो चाहते हैं उसे कुरान के माध्यम से अल्लाह से मांगें और कुरान के प्रेम के साथ ईश्वर की ओर जाएं।'' (नहज अल-बलाग़ा: उपदेश 176)
अल्लाह ने जो नेमतें दी हैं वे मनुष्य द्वारा मांगी गई नेमतों से कहीं अधिक है। लेकिन इन नेमतों को मांगने के लिए कुछ शर्तें और काम आवश्यक हैं।
आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी, हजरत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुत्बे के इस भाग के विवरण में लिखते हैं: वह आपको कुरान के माध्यम से अल्लाह से अपनी इच्छाएँ माँगने का आदेश देते हैं, इसका अर्थ यह है कि आपको अपनी आप को कुरान में मौजूद कमालात के साथ तैयार करना चाहिए, ताकि आपकी दुआएं अल्लाह की तरफ से पूरी हों। और कुरान से लगाव और कुरान से मोहब्बत के साथ अल्लाह के पास जाऐं, क्योंकि जो कोई भी कुरान से प्यार करता है वह उसमें जो आदेश दिया गया है उससे खुद को सजाता संवारता है, और इस तरह वह अच्छे और मुनासिब अंदाज में अल्लाह के पास जाता है।
इमाम आगे कहते हैं: “ لَا تَسْأَلُوا بِهِ خَلْقَهُ; और आप इस (कुरान) के माध्यम से अल्लाह के बंदों से कभी कुछ नहीं मांगें।" इस से पता चलता है कि कुछ लोग कुरान को दुनिया प्राप्त करने का साधन मानते हैं और इसे केवल कमाई का जरिया समझते हैं और इसके रुतबे पर कोई विश्वास नहीं रखते हैं। इस बात की व्याख्या में, हम इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) की एक हदीस का उल्लेख करते हैं, इमाम कहते हैं: "إِنَّ مِنَ النَّاسِ مَنْ يَقْرَءُ الْقُرْآنَ لِيُقَالَ فُلانٌ قارِءٌ وَ مِنْهُمْ مَنْ يَقْرَءُ الْقُرْآنَ لِيَطْلُبَ بِهِ الدُّنْيَا وَ لاَ خَيْرَ فِي ذلِکَ وَ مِنْهُمْ مَنْ يَقْرَءُ الْقُرْآنَ لِيَنْتَفِعَ بِهِ فِي صَلاَتِهِ وَ لَيْلِهِ وَ نَهَارِ
(कुरान पढ़ने वाले तीन किस्मों के होते हैं) लोगों का एक समूह कुरान पढ़ता है ताकि (अन्य) कहें: फलां कुरान पढ़ने वाला है, और एक समूह कुरान की तिलावत करता है ताकि इसके माध्यम से दुनियावी लाभ प्राप्त कर सके, और इनमें से किसी में भी कोई भलाई नहीं है, और कुरान का एक अन्य समूह इसे दिन-रात नमाज़ में पढ़ता है, ताकि इससे (रुहानी रूप से) लाभ उठाया जा सके।"
इमाम (अ.स.) किसी व्यक्ति को पहली दो श्रेणियों का हिस्सा होने और ऐसा विश्वास और इरादा रखने से रोकते हैं, और उसे अल्लाह के करीब जाने के साधन के रूप में कुरान का उपयोग करने के लिए कहते हैं।
इसलिए, एक व्यक्ति की पूरी चिंता इस पुस्तक के माध्यम से अल्लाह के बारे में ज्ञान प्राप्त करना और इस पुस्तक के माध्यम से उसके करीब जाना होना चाहिए, और यदि कोई व्यक्ति इसके अलावा कोई इरादा रखता है, तो एक हानिकारक भविष्य उसका इंतजार कर रहा है।