Hindu Bussiness Line से इक़ना के अनुसार, पिछले साल 11 सितंबर को दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में सांप्रदायिक झड़पों के बाद, पुलिस ने कहा कि उन्होंने दर्जनों लोगों की पहचान करने और उन्होंने गिरफ्तार करने के लिए चेहरे की पहचान तकनीक का इस्तेमाल किया, 2020 में राजधानी में अधिक हिंसक दंगों के बाद यह दूसरा ऐसा मामला है।
दोनों मामलों में, अधिकांश मुलजिम मुस्लिम थे, और मानवाधिकार समूहों और technology experts ने दिल्ली और देश में अन्य जगहों पर गरीब, अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समूहों को निशाना बनाने के लिए एआई-आधारित तकनीक के भारत सरकार के उपयोग की आलोचना की।
भारत के पास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उपकरण हैं, अधिकारियों का कहना है कि इससे काम की क्वालिटी बढ़ेगी और लोगों की सूचना तक पहुंच में सुधार होगा। टेक्निकल एक्सपर्ट्स को चिंता है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के नैतिक उपयोग के लिए formal नीति की कमी से लोगों को नुकसान होगा, भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा, अल्पसंख्यक होने का अपराधीकरण होगा और कमजोर लोगों की तुलना में अमीरों के हितों का अधिक समर्थन होगा।
दिल्ली में रोकथाम पुलिसिंग पर तहक़ीकात करने वाली एक शोधकर्ता शिवांगी नारायण (Shivangi Narayan) ने कहा: "यह (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट का उपयोग) सीधे उन लोगों पर निशाना लगता है जो हाशिये पर हैं, जैसे दलित, मुस्लिम।" और सामाजिक अल्पसंख्यकों को प्रभावित करता है और उनके खिलाफ तास्सुब और भेदभाव को बढ़ाता है।
एक्सपर्ट का कहना है कि 1.4 अरब की आबादी और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत तेजी से तकनीकी बदलाव के दौर से गुजर रहा है और हेल्थ, शिक्षा, खेती से लेकर फौजदारी इंसाफ तक के क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-आधारित तरीकों को लागू कर रहा है। इस देश में उनके नैतिक असर के बारे मेंबहुत कम बहस हुई है ।
भारत में कोई एआई कानून नहीं है, और इस संबंध में एकमात्र चीज जो मौजूद है वह है राज्य संचालित थिंक टैंक नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रणनीति, जिसमें कहा गया है कि एआई सिस्टम को धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, नसल, जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। और यह सुनिश्चित करने के लिए निगरानी की जानी चाहिए कि वे बेतरफ और भेदभाव से मुक्त हैं।
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