मनुष्य में बुरे और निन्दित नैतिक आदत में जल्दबाजी का आदत भी शामिल है। प्रत्येक कार्य के लिए तैयारी की आवश्यकता होती है, यदि उन तैयारियों का पालन नहीं किया जाता है, तो यह कार्य के विनाश का कारण बनेगा। उदाहरण के लिए, एक सेब के फल देने के लिए पूर्व शर्तों में से एक समय है। जिस के बाद एक फल पका हुआ और स्वादिष्ट बनता है। कुरान में, अल्लाह इस नैतिक गुण को संबोधित करते हुए सूरह अनीबा की सैंतीसवीं आयत में फरमाता है:
خُلِقَ الْإِنْسانُ مِنْ عَجَلٍ سَأُريكُمْ آياتي فَلا تَسْتَعْجِلُون
मनुष्य की रचना जल्दबाजी से की गई थी; लेकिन जल्दी मत करो; मैं जल्द ही तुम्हें अपने लक्षण दिखाऊंगा।" (अन्बिया:37)
किसी भी कार्य को शुरू करने के लिए दो चीजें आवश्यक हैं: पहला: खर्च की गई ऊर्जा की मात्रा के संबंध में शरीर की क्षमता। दूसरा: इंसान का रूहानी जोश और जज़्बा।
कामों में जल्दबाजी करने से दोनों ही मामले विफल हो जाएंगे। काम में जल्दबाजी करना क्योंकि जरुरी जांच के बिना जल्दबाजी में किया गया कार्य है, जिससे मनुष्य की ऊर्जा और समय की बर्बादी होती है। और जो किया जाएगा उसका कोई परिणाम नहीं होगा और यह एक लाहासिल और बेकार काम होगा। जब कोई व्यक्ति अपना समय बर्बाद करता है, तो उसका मूड खराब हो जाता है और वह आगे बढ़ने या दोबारा से शुरू करने का हौसला खो देता है। इस कारण इन मुद्दों को एक साथ रखने पर यह सत्य प्राप्त होता है कि जल्दबाजी करने से मनुष्य पर सबसे बड़ा या सबसे ज़्यादा प्रभाव यह पड़ता है कि उसे शर्मिंदगी और पछतावा होता है। इसीलिए इमाम अली (अ.स.) कहते हैं:
فَكَمْ مِن مُستَعجِلٍ بِما ان ادرَكَهُ وَدَّ انَّهُ لَم يُدرِكْهُ
कितने लोग किसी चीज़ के लिए जल्दी करते हैं कि अगर वे इसे हासिल कर लेते हैं, तो वे (तुरंत पछताते हैं और) चाहते हैं कि उन्होंने इसे कभी हासिल ही ना किया होता।" (नहज अल-बालाग़ा: ख़ुतबा 150)
अलबत्ता, तेज़ी और गति के मुद्दे की जल्दबाजी के साथ ग़लतफ़हमी ना होना चाहिए, चीजों को तेज करने से न केवल पछतावा नहीं होता है, बल्कि इंसान में शांति भी पैदा होती है; जैसा कि बताया गया है, जल्दबाजी का अर्थ है कार्य को उसकी तैयारी से पहले करना, लेकिन गति का अर्थ है कि जब तैयारी हो जाती है, तो व्यक्ति कार्य में तेजी लाता है और उसे जल्दी से समाप्त कर लेता है। तो ये दोनों बिलकुल भी एक जैसी चीज़ नहीं हैं।