दुर्भाग्य से, विरोधियों और गैर-मुसलमानों के साथ इमाम (अ फ) की सख्ती और कठोर व्यवहार का विचार कुछ ऐसे लोगों के दिमाग में घुस गया है जो शिया संस्कृति से परिचित नहीं हैं। और कुछ उनके जुहूर का फलसफा और विशेष रूप से विश्व सरकार का गठन का मुख्य मिशन यह मानते हैं कि वह गैर-मुसलमानों के खिलाफ खड़े होंगे और उनसे बदला लेंगे।
इसके आधार पर, अख़्लाकी मुद्दों के लिए आज के समाज की वैज्ञानिक आवश्यकता और गैर-मुसलमानों से निपटने में स्टैंडर्ड के संकट के अनुसार, इस्फ़हान के IKNA रिपोर्टर ने इस्फ़हान के फलसफा और कलामे इस्लामी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर मेहदी गंजौर के साथ बातचीत की। उन्होंने ने महदवायत की शिक्षाओं के प्रकाश में अन्य धर्मों के पैरोकारों के साथ तालुकात व्यवहार के पैटर्न को समझाने के बारे में बताया है, जिसके बारे में आप नीचे विस्तार से पढ़ेंगे।
मूल ग्रंथों और कुरान और नबुव्वत की शिक्षाओं की अज़ीम विरासत पर एक गहरी नज़र, हमारे नबी और मासूमों के व्यावहारिक और सांस्कृतिक जीवन और बेहतरीन तालीमात बयान करती है और आखरी ज़माने और ज़ुहूर के युग की वास्तविकता को एक अलग तरीके से चित्रित करती है। . इमाम महदी (अ फ़), मुसलमानों के महदी नहीं, बल्कि सभी कौमों के महदी और निजात देने वाले हैं। ऐसी समझ के साथ, हमारे बुजुर्गों ने उस इमाम को इस प्रकार संबोधित किया है:
«السَّلاَمُ عَلَى مَهْدِيِّ الْأُمَمِ»
"उम्मतों के महदी पर सलाम हो"
और उनका न्याय केवल मुसलमानों के लिए नहीं है, केवल उन लोगों के लिए है जो उन से सहमत हैं और अच्छे हैं, बल्कि इसमें अधर्मी और विद्रोही भी शामिल हैं। वह ईश्वर की रहमत और विशाल दया का अवतार हैं, और उन्होंने स्वयं एक तहरीर में कहा था कि हमें उनका इस तरह जिक्र करना चाहिए:
«السَّلامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا الرَّحْمَةُ الْوَاسِعَةُ»
"आप पर सलाम हो है विशाल रहमत"
और निश्चित रूप से, यह स्पष्ट है कि ईश्वर की रहमत सभी को शामिल होगी।
उस तहरीर में कहा गया है कि वह लोगों की बहार, उनकी ताजगी, जीवन शक्ति और जीवन का स्रोत हैं, और वह जमाने वालों और अपने परिवार को तरो ताज़गी देता है। यूं लगता है कि ऐसा इमाम और रहबर, उत्पीड़न, गुमराही, पाखंड, अविश्वास और बहुदेववाद के खिलाफ सख्ती रखते हुए, कुदरत और ख़ुदाई मानवाधिकारों का समर्थक और धार्मिक अल्पसंख्यकों का हामी होगा। ठीक उसी तरह जैसे उनके दादा, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वआलेही वसल्लम) और अहलेबैत अतहर (अ स), कुरान की आयतों से प्रेरित होकर, ईसाइयों और यह यहूदियों और यहां तक कि इस्लाम विरोधियों और धर्म से इनकार करने वालों के सामने भी ऐसे ही थे। और उन्होंने अपने अनुयायियों को अन्य धर्मों और धर्मों के अनुयायियों के प्रति अच्छा व्यवहार करने और निष्पक्ष रहने का आदेश दिया। अतः यह स्पष्ट है कि यह दिव्य पुरुष क्यों और किस कारण से जिहाद की तलवार अपने कन्धों पर लटकाता है और उसे ज़मीन पर नहीं रखता यहां तक कि ईश्वर उससे प्रसन्न हो। इमाम अस्र (अ.स.) की ईसाइयों और यहुदियों और अन्य धर्मों के अनुयायियों के प्रति सहनशीलता और रवादारी का मुद्दा महदवियथ के अंतरराष्ट्रीय न्याय से जुड़ा है।
यह ध्यान में रखते हुए कि हज़रत महदी (अ. फ़.) की विश्व हुकूमत की प्राप्ति के लिए न्याय के पूर्ण जारी करने और सभी कौमों और अल्पसंख्यकों के साथ अक्लमंदी और कारगर बातचीत की आवश्यकता है, धर्मों के बुजुर्गों और अनुयायियों के साथ उनके व्यवहार और संचार व्यवहार की जांच करके उसको मुसलमानों के लिए व्यवहार के एक नमूने के तौर पर माना जा सकता है।
शायद इस क्षेत्र में उनके व्यवहार पैटर्न का पहला मेयार अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति सम्मान, दया और इज़्ज़त है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करते हुए, इस्लाम ने हमेशा इस्लामी समाज में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की कोशिश की है और न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि धर्म, नस्ल, भाषा और रंग की परवाह किए बिना सभी मनुष्यों के मानवाधिकारों पर विचार किया है।
पवित्र कुरान स्पष्ट रूप से ग़ैबत युग और ज़ुहूर के युग में, विदेशी राष्ट्रों और धर्मों के अधिकारों के पालन के संबंध में इस्लाम की सामान्य नीति को इस प्रकार बताता है:
जिन्होंने धर्म के बारे में आप से जंग नहीं की आपको आपके देश से बाहर नहीं किया, उनके साथ नेकी करने और इंसाफ करने से अल्लाह तुमको नहीं रोकता है, बेशक अल्लाह इंसाफ पसंदों से प्रेम करता है।" (मुमतहेना, 8)
कुरान के इस सिद्धांत के अनुसार, इस्लामी समाज में धर्मों के अनुयायियों के लिए जीवन के क़ुदरती अधिकार के साथ-साथ उनके लिए नागरिकता और मानवाधिकारों को भी इसलाम मान्यता देता है; लेकिन इस शर्त पर कि वे मुसलमानों को धमकाएं और परेशान न करें और उनके खिलाफ साजिश न करें और युद्ध न छेड़ें।
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