फिर फिलीस्तीन में पड़ा है रन
ज़ुल्म का सांप फिर है काढ़े फन
आसमानों से बम बरसते हैं
ढूंढते हैं पनाह मर्दो ज़न
चढ़ के लाशों पे ग़ज़्ज़ा पट्टी में
लेके, सहयूनी नाचते हैं, गन
ये श्यूख़े अरब किसी के नहीं
काबा क़िबला है इनका वाशिंगटन
बस ये तुग़्रुल के सूरमा हैं सब
है नुमाइश में इनका सारा फ़न
पुश्त, सहयूनियत की मोहकम है
लेके अहले अरब का सारा धन
राम के देस में वो हाकिम हैं
वक्त के अपने हैं जो ख़ुद रावन
दूध देते हैं बहरे अमरीका
गिरवी रख्खे हुए हैं अपने थन
जूतियां चाटते हैं ताक़त की
यूं नहीं होती है कभी अनबन
उनकी तकबीर एक फ़ितना है
ला इला में नहीं है उनका मन
हश्र पर जो यक़ीन रखते हैं
वो लुटाते हैं अपना तन मन धन
बेकसों पर जो ज़ुल्म ढाते हैं
उन की घंटी बजी है टन टन टन
इतनी मज़लूमियत में हिद्दत है
टैंक मिरकावा जलते हैं धन धन
दाग़े, हम्मास ने जो राकिट हैं
सर से गुज़रे हैं सन सनासन सन
हो नई बात फिर, तो बिस्मिल्लाह
अब ख़रीदे है कौन माले कुहन
ग़ज़्ज़ा पट्टी से हुर्रियत की, नजीब
रोशनी आ रही है अब छन छन
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