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इस्लाम में ख़ुम्स/2

इकोनॉमिक्स और अख़्लाक का एक संगम

13:34 - October 21, 2023
समाचार आईडी: 3480003
तेहरान (IQNA): इस्लाम के ख़ूबियों में से एक यह है कि इसकी अर्थव्यवस्था, नैतिकता और भावनाओं के साथ जुड़ी है, जैसे इसकी राजनीति और धर्म एक साथ जुड़े हैं। हालाँकि जुमे की नमाज़ एक इबादत है, लेकिन यह एक राजनीतिक काम भी है। जिहाद में भी इस्लाम, इमोशनल, नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर पूरा ध्यान देता है।

इस्लामी व्यवस्था में, जनता और ईश्वरीय नुमाइंदे के बीच का रिश्ता सलाम और सलवात का रिश्ता है। वह लोगों को अपने पैगंबर पर सलवात भेजने का आदेश देता है: 

«یا ایّها الّذین آمنوا صلّوا علیه و سلّموا تسلیماً» (अहजाब, 56) 

 

और वह पैगंबर को जकात देने वालों को सलाम और दरूद भेजने का भी आदेश देता है। : "

 «خُذ من اموالهم صدقة و صَلِ‌ّ علیهم» (तौबा, 103)

 

  इस्लाम में, ईद कहे जाने वाले कुछ दिन हैं, जिनमें खुशी और बधाई के अलावा, ईद अल-अज़हा में कुर्बानी का गोश्त गरीबों तक पहुंचाना और ईद-उल-फितर में ज़कात फितरा के माध्यम से.भूखों को खाना खिलाना महत्वपूर्ण है। इस्लाम की व्यापकता इस हद तक है कि खाने-पीने की भी योजना किसी मकसद से बनाई गई है; वाक्य «كلوا» जो कि खाने का आदेश है, के अलावा वह कहता हैं: «كلوا...و لاتسرفوا» (अराफ, 31) खाएंं ... और ज्यादा न खाएं।

  वह एक जगह कहते हैं:كلوا... و اشكروا (अल-बकराह, 172) खाने के लिए अल्लाह का शुक्र करो।

  एक स्थान पर वे कहते हैं: «كلوا.... و لاتطغوا فیه» (ताहा, 81) भोजन के माध्यम से आपने जो शक्ति प्राप्त की है, उसके नाफरमानी न करें।

  एक जगह वह कहता है: «كلوا... و آتوا حقّه» (इनाम, 141) खाओ और इसका हक़ अदा करो।

 

  यहां तक ​​कि वह मधुमक्खी को फूल का रस चूसने के लिए कहता है, उसे शहद बनाने का आदेश देता है, इसलिए इस्लाम खाने और सोने का धर्म नहीं है, बल्कि खाने और खिलाने और अच्छे कर्म करने का धर्म है और सरकशी और ज़्यादती ना करने का धर्म है , इन सब को एक साथ मद्दे नज़र लगी गया है। किस धरम और युनिवर्सिटी में इस व्यापकता पर ध्यान दिया गया है? 

 

  वैसे तो इस्लाम भी ख़ुम्स और ज़कात वसूल करता है, लेकिन इस किताब में आपको कुछ ऐसे बिंदु और बारीकियाँ मिलेंगी जो बताती हैं कि इस्लामी करों का हिसाब-किताब दुनिया में वसूले जाने वाले सभी तरह के करों के हिसाब-किताब से अलग है जहां कानून मानवीय सोच से बुने और बनाए जाते हैं। इस्लामी कानूनों में सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया है;

 

  ख़ुम्स और ज़कात किस चीज़ से लेनी चाहिए?

  कितनी पूंजी खुम्स और जकात के शामिल है?

  कैसे प्राप्त करें और कैसे भुगतान करें और कैसे उपयोग करें?

  संपत्ति का हिसाब कौन करेगा, वसूली करने वाला या अदा करने वाला?

  भुगतानकर्ता को किस मकसद और उद्देश्य से भुगतान करना चाहिए और प्राप्तकर्ता में क्या विशेषताएं होनी चाहिए?

  लोगों में ख़ुम्स और ज़कात देने के लिए रुचि कैसे पैदा करें?

 

(मोहसिन क़िराअती द्वारा लिखित पुस्तक "ख़म्स" से लिया गया)

 

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