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क्या फ़िलिस्तीनियों ने अपनी ज़मीन ज़ायोनीवादियों को बेच दी थीं?

9:00 - November 08, 2023
समाचार आईडी: 3480105
तेहरान (IQNA): ज़ायोनी शासन के गठन के बारे में उठाए गए मुद्दों में से एक यह है कि फ़िलिस्तीनियों ने अपनी ज़मीन ज़ायोनीवादियों को बेच दी थीं और यह इज़रायली शासन के गठन में महत्वपूर्ण कारकों में से एक था। लेकिन ये दावा कितना सच है?

इक़ना के अनुसार, ज़ायोनी शासन के गठन के बारे में जो संदेह लगातार सुनने को मिलते हैं उनमें से एक यह है कि 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में फ़िलिस्तीनियों ने अपनी ज़मीन ज़ायोनीवादियों को बेच दी थीं और इससे धीरे-धीरे ज़ायोनीवाद का विस्तार हुआ और फ़िलिस्तीनी भूमि पर नाजायज़ कब्ज़ा हो गया और फिर इसराइल का गठन हो गया। लेकिन यह कथन कितना प्रलेखित है?

विश्लेषणात्मक समाचार वेबसाइट येनी शफ़क ने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए ताहा क्लिंच द्वारा लिखे गए एक लेख में इस मुद्दे की जांच की है।

इजरायली शासन के गठन की प्रक्रिया

 

ज़ायोनीवादियों का कब्ज़ा, जिसके कारण फ़िलिस्तीन की ऐतिहासिक भूमि पर इज़राइल की स्थापना हुई, तीन अक्षों या मुख्य चरणों के माध्यम से आगे बढ़ा: 1- हत्या, आतंकवाद और निर्वासन, 2- सार्वजनिक भूमि पर कब्ज़ा, 3- व्यक्तियों की भूमि और संपत्ति पर कब्ज़ा। आइए अंतिम चरण से शुरू करके इस विषय की समय की तरतीब से जाँच करें:

 

19वीं सदी में, जब ओटोमन साम्राज्य अभी भी शक्तिशाली था, फ़िलिस्तीन में दुनिया भर से विभिन्न नस्लों और धर्मों के बहुत से लोग रहते थे। उस समय, सरकारी नीतियों और संतुलन नीति के ढांचे के भीतर विभिन्न देशों और उनके नागरिकों को विशेषाधिकार दिए गए थे; विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को इबादत घर बनाने का अधिकार दिया गया और संपत्ति आदि लेनदेन के संबंध में आसान नियम स्थापित किए गए।

 

सदियों से फ़िलिस्तीनी भूमि पर रहने वाले यहूदी समुदायों के अलावा, यूरोप और अन्य क्षेत्रों के यहूदियों ने भी फ़िलिस्तीन में ज़मीन खरीदी और बस गए। बेशक, उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि ये यहूदी एक दिन स्थानीय लोगों को उनकी ज़मीन से बाहर निकाल देंगे और वहां नाजायज़ कब्ज़े वाला देश बना देंगे।

 

लेकिन सुल्तान अब्दुल हमुद द्वितीय के शासनकाल के दौरान, जब ज़ायोनी राजनीतिक आंदोलन एक स्पष्ट खतरे के रूप में सामने आया, तो ओटोमन साम्राज्य ने यहूदियों को जमीन की बिक्री को रोकने के लिए सभी संभव उपाय किए। आज, उस समय के कई अरब उलमा के फतवे मौजूद हैं, जो इस बात पर जोर देते हैं कि विदेशों से यहूदी प्रवासियों को जमीन और अचल संपत्ति बेचना "शरिया के अनुसार हराम" है।

 

जमीन की बिक्री से जुड़ी एक अहम बात का जिक्र करना भी जरूरी है। फ़िलिस्तीन के उत्तर में बड़े क्षेत्र अरब ज़मींदार परिवारों के थे, जिनमें से अधिकांश गैर-मुस्लिम थे और लेबनान और मिस्र में रहते थे। इसी तरह, यरूशलेम में, जिस भूमि पर इज़राइल का नेसेट बनाया गया था, वह यरूशलेम के ग्रीक ऑर्थोडॉक्स बिशप की थी।

 

जब 20वीं सदी की शुरुआत में ओटोमन साम्राज्य अपने आखिरी दिनों से गुज़रा और धीरे-धीरे विभिन्न ज़मीनों पर अपना नियंत्रण खो दिया, तो दुनिया भर से फ़िलिस्तीन में आकर बसने वाले यहूदियों ने इस अवसर का नाजायज़ लाभ उठाकर सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया और अपने खेतों की रक्षा की। (किबुत्ज़) यानी असलहाबन्द मिलिशिया गिरोहों का उपयोग करके इन जमीनों पर कब्जा कर लिया था। इन असलहा बन्द गिरोहों ने इजरायली सरकार के गठन के दौरान खुद को अलग-अलग नामों से संगठित किया और उनमें से कुछ टूट गए और अन्य इजरायली सेना का आधार बनने के लिए तैयार हो गए।

 

फ़िलिस्तीनियों के ख़ून के समुद्र पर आधारित शासन

 

फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में रहने वाले मूल निवासियों को निशाना बनाकर नागरिकों की हत्या, धोंस धमकी और निर्वासन ज़ायोनी शासन द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे आम तरीका था और इससे उन्हें सबसे अधिक परिणाम मिले।

1930 के दशक के मध्य से 1948 की अवधि के दौरान, फ़िलिस्तीन की भूमि ने अपने इतिहास में सबसे खूनी संघर्षों में से एक देखा। 750,000 से अधिक लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में भागने करने के लिए मजबूर होना पड़ा, 20,000 से अधिक नागरिक मारे गए, गांवों को नष्ट कर दिया गया और लूट लिया गया, और भयानक नुकसान हुआ।

 

इज़राइल की स्थापना महज़ एक ऐसा "नुकसान" नहीं थी जो किसी भी राष्ट्र की स्थापना के समय हो सकती है। बल्कि लगभग एक हजार फ़िलिस्तीनी बस्तियों को मानचित्र से मिटा दिया गया, और यहूदियों ने फ़िलिस्तीनी लोगों द्वारा छोड़ी गई हर चीज़ पर कब्ज़ा कर लिया। दरअसल, इजराइल का निर्माण फिलिस्तीनी खून के समुद्र पर हुआ था।

 

इस के अलावा, इज़राइल ने 1948-1949, 1967 और 1973 में अरबों के साथ युद्ध के बाद फिलिस्तीनियों की कई संपत्तियों और जमीनों पर कब्ज़ा कर लिया। इसके अलावा, इज़राइल की कब्ज़ा वाले छेत्र में यहुदियों के लिए नई नई कालूनियां बसाना उन फ़िलिस्तीनी भूमि में Permanent colonization के रूपों में से एक है।

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