IQNA

इस्लाम में ख़ुम्स/3

कुरान में खुम्स की आयत पर एक नजर

13:57 - November 10, 2023
समाचार आईडी: 3480114
तेहरान (IQNA): इस्लाम के मद्देनज़र अर्थव्यवस्था, अख़्लाक और भ जज़्बात है जुड़ी हुई है, और कुरान में खुम्स आयत पर एक नज़र डालने से इस मुद्दे के महत्वपूर्ण पहलुओं का पता चलता है।

«وَ اعلَموا أنّما غَنِمتُم مِن شَى‌ءٍ فَاِنّ لِلّهِ خُمُسَه و لِلرَّسولِ ولِذِى القُربى‌ وَ الیَتامى‌ والمَساكینِ وابنِ السَّبیلِ اِن كُنتُم آمَنتُم بِاللّه...؛ 

यदि आप अल्लाह पर ईमान रखते हैं, तो जान लें कि जो कुछ भी आपको ग़नीमत के रूप में मिलता है, तो ज़रुर, इसका पांचवां हिस्सा अल्लाह, उसके पैग़ंबर, रिश्तेदारों, यतीमों, जरूरतमंदों और रास्ते में मजबूर हो जाने वाले लोगों के लिए है" (अनफाल, 41)

 

आयत के नाज़िल होने की तारीख

 

कुछ लोग आयत के उतरने के समय को बनी क़ैनक़ा की लड़ाई (हिजरी के दूसरे वर्ष के 15 शव्वाल) के रूप में मानते हैं, कुछ लोग उहुद की लड़ाई (हिजरी के तीसरे वर्ष के 7 शव्वाल) के रूप में मानते हैं और कुछ बद्र की लड़ाई (हिजरी के दूसरे वर्ष का माहे रमज़ान) मानते हैं, कि अल्लाह चाहता है कि इस्लाम के मुजाहिदीन ने युद्ध में ग़नीमत के रूप में जो कुछ लिया है उसका खुम्स अदा करें।

 

खु़म्स की आयत की कुछ बारीकियां

 

खुम्स आयत पर एक नजर डालने से इसका महत्व पता चलता है क्योंकि:

 

1- अहकाम से संबंधित बहुत कम आयतों में ये सभी जोर एक के बाद एक आये हैं। शब्द 

«واعلموا، انّما، من شى، فانّ، للّه خُمُسه («خمسه للّه» इस्तेमाल नहीं किया) و ان كنتم آمنتم» 

यह सब जोर देने का संकेत हैं।

 

  2- वह लोगों का होसला बढ़ाने के लिए कहता है: यदि तुम ईमान लाए हो तो ख़ुम्स दो। इसलिए, इसके अदा करने को ईमान की शर्त के रूप में मान्यता दी गई है।

 

  3- जुमला «فانّ للّه خُمُسه» (जो एक इसमिया जुमला है) इंगित करता है कि यह हुक्म हमेशा के लिए है, वक़ती या मौसमी नहीं। इसके अलावा, जो चीज़ ईमान की निशानी है वह वक़ती नहीं हो सकती।

 

  4- आयत के शुरु में «واعلموا» शब्द का अर्थ है कि आपको खुम्स देने में विश्वास करना चाहिए और मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए। यह वास्तव में अजीब है कि मोर्चे में भाग लेना, पैगंबर के साथ रहना, नमाज़ पढ़ना और रोज़ा रखना, सही अक़ीदा रखना, हिजरत करना, अंसार होना और पहले ईमान लाना, घायल होना और अंततः दुश्मनों की सेना पर जीत हासिल करना अकेले काफ़ी नहीं है, क्योंकि कुरान भी कहता है: हे विजयी योद्धाओं! अगर तुम ईमान लाए हो तो ग़नीमत का खुम्स अदा करो। यदि आप जिहाद और नमाज़ जैसे कुछ हुक्म का पालन करते हैं, लेकिन खुम्स के हुक्म का पालन नहीं करते हैं, तो आपके पास सच्चा ईमान नहीं है।

 

एक महत्वपूर्ण नोट

 

  अल्लाह के नबी, सल्लल्लाहु अलैहि वआलेही वसल्लम, को बद्र की लड़ाई की रात नींद नहीं आई और लगातार प्रार्थना करते रहे थे और कह रहे थे: हे अल्लाह! मुसलमानों के इस छोटे से समूह जैसा पृथ्वी पर कोई नहीं है, यदि वे विफल हो गए, तो आपके पास पृथ्वी पर कोई वफादार सेवक नहीं होगा। लेकिन कुरान इन योद्धाओं से कहता है: यदि आप मोमिन हैं, तो ख़ुम्स दें। यानी, दुनिया में मोमिनों की संख्या बहुत कम हो सकती है, लेकिन वे थोड़े से भी जो पैगंबर की दुआओं में शामिल हैं, यदि वे खुम्स अदा नहीं करते हैं तो ईमान वाले नहीं हैं।

 

मोहसिन क़रैती द्वारा लिखित पुस्तक "ख़म्स" से लिया गया

captcha