न केवल सूरह अनफ़ल की आयत 41 में ख़ुम्स की अदायगी को ईमान की शर्त और आवश्यकता माना गया है, बल्कि इस सूरह की चौथी आयत भी ज़रुरत मंद की मदद करने के लिए सच्चे विश्वासियों की निशानी मानती है और कहती है: “मोमिन वे हैं जिनके दिल उस समय धड़क उठते हैं जब अल्लाह को याद किया जाता है और... हमने उन्हें जो दिया है वो खर्च कर देते हैं. ये सच्चे मोमिन हैं।" हाँ, खुम्स अदा करना कई पहलुओं से महत्वपूर्ण है, और हम उनमें से कुछ का उल्लेख एक सूची में करेंगे।
अक़ीदे के ऐतबार से
जैसा कि हम खुम्स आयत में पढ़ते हैं: खुम्स अदा करना सच्ची आस्था और ईमान की निशानी है। «اِن كنتم آمنتم...»
इबादत की नज़र से
खुम्स इबादत के कामों में से एक है और इसे अल्लाह है क़रीब होने के इरादे से अदा किया जाना चाहिए, और कोई भी रियाकारी और मिलावट इस कर्तव्य के पालन में हस्तक्षेप करेगी।
राजनीतिक एतबार से
जामे शराइत फ़क़ीह और हाकिम को खुम्स अदा करने से लोग पैगंबर के जानशीन से जुड़ते हैं, जिसने पूरे इतिहास में ज़ालिमों को हिलाकर रख दिया है। खुम्स अदा करने से अहल अल-बेत के रास्ते को मदद मिलती है और फ़क़ीहों और हौज़ात इल्मिया की वित्तीय नींव मजबूत होती है, जिन्होंने पूरे इतिहास में लोगों को बेदार किया है। ख़ुम्स अदा करना उलमा, छात्रों द्वारा धार्मिक सीमाओं और खामियों से अलवी विचार का प्रचार और प्रसार करने, सभी प्रकार के फ़िकरी और नैतिक गुमराहियों के खिलाफ लड़ने का ज़रिया है।
इसके अलावा, यह उलमा व फ़ुक़हा और लोगों के बीच भावनात्मक और जज़्बाती संबंध स्थापित करता है और उलमा व फ़ुक़हा को समाज की आर्थिक स्थिति से आगाह कराता है।
आर्थिक हिसाब से
खुम्स अदा करना धन को इंसाफ से बांटने, हद्द से ज़्यादा इकट्ठा करने के खिलाफ लड़ने और समाज में वंचितों और जरूरतमंदों तक पहुंचने का एक तरीका है।
सामाजिक रूप से
खुम्स अदा करना विभिन्न वर्गों के बीच प्यार और प्रेम पैदा करने और गहरे सामाजिक फासलों के निर्माण को रोकने का एक तरीका है।
साइकोलॉजी के तौर पर
ख़ुम्स अदा करने से व्यक्ति को यह एहसास होता है कि वह अहले-बैत, मर्जाए तकलीद, मदरसों और सही धार्मिक प्रचार का हामी है, और यह भावना उसे हमेशा सही मोर्चे का समर्थक और झूठे मोर्चों के खिलाफ बनाती है।
शिक्षा के संदर्भ में
ख़ुम्स अदा करने से एक व्यक्ति को बारीक बीन, सटीक, जिम्मेदारी का एहसास करने वाला, समाज में वंचितों के प्रति जिम्मेदार होने और अल्लाह, रसूल और अहल-अल-बेत, अलैहिमुस्सलाम, की लाइन का समर्थन करने के लिए वफादार होने के तय्यार करता है।
खुम्स अदा करने से व्यक्ति में सखावत और दयालुता की भावना पनपती है।
खुम्स अदा करने से इंसान के अंदर से बेहिसी और दुनियादारी की भावना दूर हो जाती है।
क़ुरबत की नीयत से अल्लाह के साथ मनुष्य के रिश्ता संभलता है,
उलमा और फ़ोक़हा की सहायता से मासूम या आदिल शासक के साथ मानवीय संबंध बनता है,
लोभ, लालच और उदासीनता पर क़ाबू पाकर मनुष्य का स्वयं से संबंध अच्छा होता है,
निवाला और दहेज को हलाल करके अगली पीढ़ी के साथ मानवीय संबंध सही होता है,
और यह महरुम सादात तक पहुंचा कर, इस्लाम के पैगंबर और उनके अहल-अल-बैत, अलैहिमुस्सलाम, के साथ मनुष्य का रिश्ता समायोजित, सही और मजबूत होता है।
मोहसिन क़िराअती द्वारा लिखित पुस्तक "ख़म्स" से लिया गया