इकना के अनुसार, इस्लामिक देशों में लोगों ने ज़ायोनी कंपनियों या ज़ायोनी शासन और विशेष रूप से अमेरिकी उत्पादों का समर्थन करने वाली कंपनियों के उत्पादों का बहिष्कार करने के लिए विभिन्न अभियानों में शामिल होकर गाजा के मज़लूम लोगों के खिलाफ ज़ायोनी शासन के अपराधों पर अपना गुस्सा दिखाया।
हालाँकि सोशल नेटवर्क, विशेष रूप से फेसबुक और एक्स, इस्राइली कब्जे वाले शासन के अपराधों की आलोचना करने वाले पोस्ट हटा देते हैं और अपने यूजर्स के खातों को ब्लॉक कर देते हैं, लेकिन फिर भी, इस्लामी देशों में ज़ायोनी और पश्चिमी वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान अरबों तक फैल गया है।
इस बीच, इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के कुछ सदस्य देश इजराइल का समर्थन करने वाले पांच देशों से 79 अरब डॉलर के हलाल उत्पाद इम्पोर्टे करते हैं।
एक रिपोर्ट में, सलाम गेटवे Salaam Gateway ने इस मुद्दे और इज़राइल की अर्थव्यवस्था पर इस्लामी देशों की सहमति के प्रभावों पर चर्चा की, जिसे हम नीचे पढ़ते हैं।
दिनारास्टैंडर्ड के अनुसार, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका OIC सदस्य देशों को $31 बिलियन और $19 बिलियन के हलाल उत्पाद एक्सपोर्ट करते हैं, इसके बाद फ्रांस ($14.4 बिलियन), जर्मनी ($10.65 बिलियन) और यूनाइटेड किंगडम ($4.4 बिलियन) का स्थान आता है।
पिछले दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गाजा में तत्काल मानवीय युद्धविराम का आह्वान किया था। इस मतदान में भारत, जर्मनी और ग्रेट ब्रिटेन ग़ैर हाज़िर रहे।
क़ाबिले तव्वजो करने वाली बात यह है कि ओआईसी के 79 बिलियन डॉलर के आयात में से 76% - लगभग 60 बिलियन डॉलर के बराबर - जिनमें से अधिकांश हलाल उत्पाद हैं, आसानी से अन्य देशों से प्राप्त किए जा सकते हैं।
एक सामान्य मक़सद तक पहुँचने में इस्लामिक सहयोग संगठन के 57 सदस्य देशों में strategic coordination और commercial alignment इज़राइल के खिलाफ काफी आर्थिक दबाव ला सकते हैं।
OIC संयुक्त राष्ट्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा संगठन है, जिसके सदस्य देश चार महाद्वीपों में फैले हुए हैं।
मुस्लिम दुनिया भर में दो अरब से अधिक लोगों और दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी के साथ एक कस्टमर बाजार का गठन करते हैं। वे संख्या और purchasing power के मामले में महत्वपूर्ण हैं, और इसलिए Global brands and products पर महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं।
वर्तमान समय में इन अनुभवों का उपयोग सभी इस्लामी देशों की एकजुटता के साथ एक नतीजे पर पहुंच सकता है और यह दिखा सकता है कि मुस्लिम बाजार एक ऐसा बाजार नहीं है जो केवल consumer market है, बल्कि मानवीय और नैतिक जिम्मेदारी वाला बाजार है।