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सुलेखक और आईना कारी की प्रदर्शनी पर इक़ना की रिपोर्ट

"प्रकाश के दिल से" प्रदर्शनी में इस्लामी कलाओं के जलवे + वीडियो

9:29 - December 11, 2023
समाचार आईडी: 3480282
तेहरान (IQNA): "प्रकाश के दिल से" प्रदर्शनी, नियावरान संस्कृति केंद्र की गैलरी नंबर एक में सुलेखकों और आईना कारों की सामूहिक कला को दर्शाती है, जहां इस्लामी कला के सुंदर काम प्रदर्शित किए गए हैं।

ईरानी संस्कृति में पानी और आईना दो तत्व हैं, जो पवित्रता और रोशनी, ईमानदारी और पवित्रता के प्रतीक हैं और इनका उपयोग हमारी मेमारी में भी सेम्बुल symbolic रूप से किया गया है।

 

यह सजावटी कला अधिकतर धार्मिक स्थलों और मजारों पर विशेष प्रभाव पैदा करती थी। ईरान में कई हुनरमंद इस पेशे और कला में लगे हुए हैं और इस्लामिक आर्किटेक्चर सेंटर ने छात्रों को पोषण और प्रशिक्षण देकर इस प्राचीन कला को ज़िन्दा करने के लिए कई प्रयास किए हैं।

 

 

 

साथ ही, इस केंद्र ने फ़न्ने तामीर की प्राचीन परंपराओं को ज़िन्दा करने के क्षेत्र में कूफी लिपि की ओर जाने का प्रयास किया है, जो पिछली शताब्दियों में नस्ख लिपि के रिवाज के कारण फ़न्ने तामीर के भवनों को सजाने के लिए सुलेखकों और कलाकारों के एजेंडे से बाहर हो गई थी। लेकिन क्योंकि कूफी लिपि कुरान की आयतों को लिखने की वजह से सामने आई थी इस लिए कुरान की रोशनी ने कलाकारों का ध्यान आकर्षित किया है और ईरानी कला के क्षेत्र में इसकी फैलाव और विकास का कारण बना है। हालाँकि कुरान के सबसे पुराने जीवित उदाहरण हिजाज़ी लिपि में लिखे गए हैं, लेकिन कूफ़ी लिपि का निर्माण इस्लाम के तक़रीबन साथ ही हुआ था, और कुरान को कुफ़ी लिपि में लिखा गया था, और बाद में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वआलेही वसल्लम) के साथियों और छात्रों में लिखाई पढ़ाई राइज होने के साथ इस लिपि का विस्तार भी हो गया।

 

 

 

 

सियावाश तर्ज़ी की देखरेख में आईना कारों के सामूहिक काम की और होमायूं मोक़द्दस की देखरेख में कुफी लेखकों के कामों की प्रदर्शनी "प्रकाश के दिल से" 8 दिसंबर से फरहंगसराय नियावरान की गैलरी नंबर 1 में आयोजित की गई है। इस प्रदर्शनी में पिछले दो वर्षों में इन उस्तादों की देखरेख में तर्बियत याफ़्ता छात्रों के कार्यों को प्रदर्शित किया गया है।

 

 

 

 

इस प्रदर्शनी के मौके पर हुमायूं मोक़द्दस ने कहा: कुफी लिपि मूल रूप से कुरान लिखने के लिए बनाई गई थी। इस लिपि का पहला रूप भी हज़रत अली (अ.स.) द्वारा लिखा गया था, लेकिन जिस लिपि को आज हम कूफ़ी के नाम से जानते हैं उसमें अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की लिपि से कुछ अंतर हैं।

 

 

 

इस मास्टर सुलेखक ने कुफ़ी लिपि से कुरान लिखने के बारे में बताया कि इस्लाम की शुरुआत में, कुरान लिखने के लिए कुफ़ी लिपि बहुत आम थी, लेकिन समय के साथ, इस लिपि को छोड़ दिया गया था। अब इस लिपि का उपयोग कुरान लिखने के लिए नहीं किया जाता क्योंकि इसमें जनता के लिए पत्नी मुश्किल है और इस में ज़बर ज़ेर पेश लगाना भी सख़्त हैं।

 

 

 

"प्रकाश के दिल से" प्रदर्शनी में भाग लेने वाले कलाकारों की कलाकृतियों को देखने के इच्छुक लोग 14 दिसंबर, गुरुवार तक सुबह 10:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक और शुक्रवार को दोपहर 2:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक प्रदर्शनी स्थल पर आ सकते हैं। 

 

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