इकना के मुताबिक, पिछले दो दशकों में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कुरान के मुताले पर काफी ध्यान दिया गया है और इस क्षेत्र में काफी शोध भी हुए हैं।
सैमुअल जे. रॉस, (Samuel J Ross)، टेक्सास क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी में धर्म के सहायक प्रोफेसर, अमेरिकी कुरान विद्वानों में से एक हैं।
अब वह कुरान के अध्ययन और इस्लामी मान्यताओं और समकालीन इस्लामी दुनिया के क्षेत्र में पढ़ाते हैं, और इस्लाम और ईसाई धर्म, इस्लाम और आधुनिकता और अमेरिकी मुसलमानों के बीच संबंध उनकी रुचि के अन्य क्षेत्रों में से हैं।
रास ने इस्लामी और कुरानिक अध्ययन के क्षेत्र में कई किताबें लिखी हैं। उनके कार्यों में, हम ओटोमन युग में कुरान की तफ़सीर के महत्व पर एक पुस्तक का उल्लेख कर सकते हैं। उन्होंने अरबी ग्रामर सिखाने पर चार खंडों वाली एक पुस्तक भी लिखी है।
कुरान अध्ययन के क्षेत्र में रॉस के नवीनतम कार्य का नाम (The Biblical Turn in the Qur'an Commentary Tradition) है, जो 280 पेज है और De Gruyter द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। इस पुस्तक की पांडुलिपि ने BRAIS 2019 - डी ग्रुइटर पुरस्कार जीता।
इस्लाम का पवित्र ग्रंथ कुरान, अल्लाह की आयतों का एक संग्रह है जो 610 और 632 ईस्वी के बीच इस्लाम के पैगंबर के सामने प्रकट हुआ था। मुसलमान इस पवित्र पुस्तक का अध्ययन उन तफ़सीरों की मदद से करते हैं जो आयत दर आयत उस की तफ़सीर करती हैं। पहली तफ़सीर 8वीं शताब्दी ईस्वी में लिखी गई थीं और मुस्लिम विद्वान आज भी तफ़सीर लिखना जारी रखते हैं।
रॉस का कहना है कि इस्लामी विद्वान जानते हैं कि कुछ कुरान मुफ़स्सिरों ने बाइबिल का हवाला दिया है, लेकिन वह इस बात की स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करना चाहते हैं कि ये संदर्भ कितनी बार और किन ऐतिहासिक क्षणों में आते हैं। उनका शोध इस बात पर प्रकाश डाल सकता है कि पूरे इतिहास में मुसलमानों ने ईसाइयों और यहूदियों के साथ कैसे बातचीत की।
कुरान के मुफ़स्सिर 19वीं शताब्दी के बाद बाइबिल का उल्लेख करते हैं
रॉस ने बाइबिल के संदर्भ के लिए कुरान की 153 डिजिटल तफ़सीरों के पाठ की खोज की। परिणामों से पता चला कि कुरान के मुफ़स्सिरों ने, ख़ास मामलों को छोड़कर, 19वीं सदी के अंत तक अपनी व्याख्याओं में बाइबिल का उल्लेख नहीं किया। फिर अचानक 19वीं सदी के बाद से, पूरे मुस्लिम जगत के मुफ़स्सिरों ने बाइबल का उल्लेख करना शुरू कर दिया। उनकी खोज ने नए प्रश्न खड़े किए: मुफ़स्सिरों ने पहले बाइबल का उल्लेख क्यों नहीं किया? 1800 के दशक के अंत में ऐसा क्या हुआ जिसने इस परिवर्तन को जन्म दिया?
रॉस ने पाया कि अगरचे ईसाई धर्मग्रंथों का अरबी में अनुवाद 8वीं शताब्दी की शुरुआत में ही हो गया था, लेकिन मुसलमानों को 12वीं शताब्दी तक अरबी एडिशन तक पहुंचने में कठिनाई होती थी। उस समय तक, इस्लाम दुनिया के उन क्षेत्रों में प्रमुख धर्म बन गया था जहां मुफ़स्सिर काम करते थे, जिनमें स्पेन, मध्य पूर्व और मध्य एशिया शामिल थे। रॉस का ख़्याल है कि यहूदियों या ईसाइयों के साथ नियमित संपर्क की कमी के कारण, मुसलमानों में बाइबल के बारे में कम उत्सुकता रही होगी।
बाइबिल पढ़ने से कुरान के बारे में मुसलमानों की समझ बदल गई
लेकिन 19वीं शताब्दी में अरब दुनिया में ब्रिटिश और फ्रांसीसी colonial शक्ति के विस्तार के साथ-साथ ईसाई मिशनरियों की आमद हुई, जो अरबी में लाखों बाइबिल लाए और स्कूलों की स्थापना की, जहां कई मुसलमानों ने शिक्षा प्राप्त की। रॉस का कहना है कि बाइबिल पढ़ने से मुसलमानों के कुरान को समझने का तरीका बदल गया। उन्होंने उन आयतों की पहचान की जिनकी मुफ़स्सिरों ने बाइबिल तक पहुंचने के बाद अलग-अलग तफ़सीर की।
रॉस कहते हैं: आप ऐसे मुफ़स्सिरों के उदाहरण देख सकते हैं, जिन्हें जब कुरान और बाइबिल के बीच स्पष्ट टकराव का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने दोनों में मेल बिठाने की कोशिश की।
कुरान की व्याख्या पर एक शोधकर्ता और टोरंटो विश्वविद्यालय में धर्म के प्रोफेसर वलीद सालेह, जो ब्रिटिश इस्लामिक स्टडीज एसोसिएशन अवार्ड के न्यायाधीशों में से एक थे, इस पुस्तक के बारे में कहते हैं: रॉस के शोध तक, किसी ने भी ऐसा नहीं किया था। कुरान की तफ़सीरों की जांच में मुसलमान बाइबिल का उपयोग कैसे करते हैं। उन्होंने आगे कहा: "उन्होंने हमें एक नतीजा और एक रूपरेखा दी है जो पहले मौजूद नहीं थी, और इससे हमें व्याख्याओं के इतिहास का वर्णन करने की बेहतर समझ मिलती है।"
4189840