नज़ीर मुहम्मद अय्याद, जो मिस्र के इस्लामिक रिसर्च अकादमी के महासचिव भी हैं, ने मिस्र के अखबार 'अल-शुरूक' के साथ बातचीत में कहा कि "काहिरा डिक्लेरेशन ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड इफ्ता" धार्मिक क्षेत्र में एआई के उपयोग को विनियमित करने के लिए पहला वैश्विक दस्तावेज है।
उन्होंने कहा कि यह दस्तावेज धार्मिक विद्वानों, नीति निर्माताओं, मुफ्तियों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के बीच व्यापक चर्चा और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक संस्थानों के सहयोग का परिणाम है।
नज़ीर अय्याद ने जोर देकर कहा कि एआई द्वारा जारी किए गए फतवे मानवीय फतवों की जगह नहीं ले सकते, क्योंकि फतवा सिर्फ एक पाठ्य उत्तर या डेटाबेस से निकाली गई जानकारी नहीं है। फतवा जारी करना एक जटिल इज्तिहादी प्रक्रिया है, जिसके लिए एक शिक्षित और जागरूक मानवीय बुद्धि की आवश्यकता होती है, जो शरई ग्रंथों को समझने और बदलती वास्तविकताओं के साथ शरई इरादों को समझने तथा फतवे के संभावित प्रभावों का आकलन करने में सक्षम हो। ये ऐसी चीजें हैं जिन पर एआई की पूरी पकड़ नहीं हो सकती।
नज़ीर अय्याद के अनुसार, फतवा जारी करने में एआई के उपयोग की सीमाएँ निर्धारित हैं। यह तकनीक एक फकीह या मुफ्ती की सहायता के रूप में काम कर सकती है, जैसे कि जानकारी एकत्र करने, सवालों का विश्लेषण करने और फतवों को व्यवस्थित करने में, लेकिन यह शरई निर्णय या अंतिम फतवा जारी करने के योग्य नहीं है।
अय्याद ने कहा कि इन सीमाओं का पालन करने से फतवा जारी करने की प्रक्रिया का मानवीय और नैतिक मूल्य बना रहेगा और धार्मिक इज्तिहाद की गरिमा तकनीकी निर्भरता से होने वाले नुकसान से सुरक्षित रहेगी।
4298839