
इकना ने अल-वतन के एक रिपोर्ट के अनुसार लिख़ा कि: खुशी और दुख की मिश्रित भावनाओं से भरी आंखों, थोड़े डर और तेजी से धड़कते दिल के साथ, युवा फिलिस्तीनी खालिद सुल्तान अपने घर के खंडहरों के पास पहुंचा, जिसे कब्जा करने वाली सेनाओं ने क्रूरतापूर्वक नष्ट कर दिया था।
उसके पैर मलबे के नीचे घिसटते हुए उस जगह के अवशेषों को देखने लगे जो कभी उसकी यादों और सपनों का घर हुआ करती थी, अपने बचपन की यादों, अपने परिवार के साथ बिताई गर्म रातों और अपने नष्ट हुए कमरे के विवरण को खोजते हुए। अचानक, जैसा कि खालिद ने बताया, ईश्वर का एक संदेश उसके पास आया।

" فَاسْتَبْشِرُوا بِبَيْعِكُمُ الَّذِي بَايَعْتُمْ بِهِ وَذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ : अतः जो समझौता तुमने उसके साथ किया है, उससे प्रसन्न रहो, और यही महान विजय है। " (सूरह अत-तौबा, आयत 111) खालिद ने पवित्र कुरान की यह आयत पढ़ी, जो उसे अपने पूरी तरह से नष्ट हो चुके घर के खंडहरों के बीच मिली थी।
उसने इस आयत को एक ईश्वरीय संदेश के रूप में देखा, जो उसे इस बात पर ज़ोर दे रही थी कि अपने घरों और प्रियजनों के लिए फ़िलिस्तीनियों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया, बल्कि एक महान विजय का मार्ग है। इस वाक्य ने उस युवा फ़िलिस्तीनी के दिल को छू लिया, जो गाज़ा में दो साल से चल रहे युद्ध से हुई तबाही के बीच आशा की तलाश में था।
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