मुस्तफा महमूद, मिस्र के एक क़ुरआनी मोहक़्क़िक़, डॉक्टर, विचारक, लेखक और कार्यक्रम निर्माता, ने 5 दशकों से अधिक की अक़ली और अदबी गतिविधि के दौरान, तजरबाती विज्ञान की ईमान-आधारित समझ पेश करके, विज्ञान के हावी होने के जमाने में ईमान और अख़्लाक़ के स्थान के महत्व को प्रस्तुत करने की कोशिश की।
इकना के अनुसार, मुस्तफा कमाल महमूद हुसैन आले महफूज (जन्म 27 दिसंबर, 1921 - मृत्यु 31 अक्टूबर, 2009) मिस्र के कुरान के विद्वान, डाक्टर, विचारक और लेखक थे। कुरान की तफ़्सीर, धार्मिक विचारों और यात्रा वगैरह के क्षेत्र में उनके 89 पुस्तक शीर्षक हैं
महमूद, डाक्टरी के क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक शिक्षा के साथ-साथ मिस्र और दुनिया में उस वक़्त के अक़ली और बौद्धिक माहौल के मिजाज के कारण, माद्दी दुनिया को एक जब्र व ज़बरदस्ती दुनिया मानते थे जिसमें मनुष्य का कोई इख़्तियार नहीं है। इस के बावजूद, वर्षों के ग़ौर फ़िक्र और शक को दूर करने की कोशिश, जैसा कि उन्होंने खुद 1970 में प्रकाशित "माई जर्नी फ्रॉम डाउट टू फेथ" पुस्तक में ज़िक्र किया था, ने उन्हें इस विश्वास तक पहुँचाया कि वुजूद केवल माद्दी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हो सकता है, और इसलिए मनुष्य के बाहर की माद्दी दुनिया में नहीं, बल्कि मनुष्य को उसके भीतर की दुनिया में इख़्तियार की तलाश करनी चाहिए।
इस पुस्तक में, मुस्तफा महमूद मिस्र में उस समय के समाज में कुरान की स्थिति की भी आलोचना करते हैं और कुरान को पढ़ने की गलत समझ और तसव्वुर को कुरान के चमत्कारों के छिपे रह जाने कि कारण कहते हैं। उनके निगाह में, मौजुदा क़ारी ग़म, खुशी, सबक और चेतावनी के बारे में आयत के मज़मून पर ध्यान दिए बिना एक समान तरीके से कुरान का पाठ करते हैं; वह मुद्दा जिसके कारण सुनने वाला, आयाते इलाही को ठीक से नहीं समझे जा सकते।
"गॉड एंड मैन" पुस्तक में, महमूद ने शक और यक़ीन और तौहीद या कुफ़्र के बारे में बुनियादी सवालों के जवाब देने की कोशिश की थी। कई लोगों ने इस पुस्तक को कुफ्र आमेज़ माना; हालांकि, इस आरोप की जांच करने के लिए उस समय मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर के अनुरोध पर बुलाई गई एक अदालत में, अदालत ने उन्हें इस पुस्तक में कुफ़्र के आरोप से बरी कर दिया। सादात के काल में इस पुस्तक ने उनका ध्यान आकर्षित किया था। सादात, जिनकी महमूद से व्यक्तिगत मित्रता थी, ने उन्हें "मेरे और मेरे नास्तिक मित्र के बीच संवाद" नाम से पुस्तक प्रकाशित करने के लिए कहा। महमूद ने बाद में इस पुस्तक में अपने स्वयं के विचारों की आलोचना की और इसे "शक से ईमान तक की यात्रा" के चरण के रूप में वर्णित किया।
उनकी अन्य जबरदस्त काम को "इल्म और ईमान" कार्यक्रम माना जा सकता है। यह कार्यक्रम 1971 से 1999 तक 400 एपिसोड में मिस्र के टीवी पर 28 वर्षों तक प्रसारित किया गया था, और ये ईमान पर आधारित इल्म की परीक्षा थी। इस कार्यक्रम में वह सबसे पहले मोडर्न दुनिया में विज्ञान की उल्लेखनीय प्रगति के बारे में बताते थे और फिर कुरान की कुछ आयतों को बयान करके और इन आयतों की तफ़्सीर का उल्लेख करके ईमान के पहलुओं के साथ-साथ इस वैज्ञानिक प्रगति से सीखे गए सबक़ को संबोधित करते थे, जैसे बुराई से विज्ञान की पाक होना और विज्ञान को दुरुपयोग करके महान बुराई को रोकने के लिए ईमान का सहारा लेने की आवश्यकता।