अनदाज़े बयान और शब्दों की अदायगी की शक्ति और सौत व लहन के ऐतबार से शायद ही कोई शेख सय्याद जैसा का़री हो। यह मिस्री का़री तिलावत करने में सक्षम था और उसके पास तिलावत करने का एक विशेष तरीका था, जिसे "सयादिया" मकतब के रूप में जाना जाता था, और के तिलावत करने वाले को "हीरे के गले" की नाम दिया गया था।
मिस्र के प्रसिद्ध का़री शेख "शाबान अब्दुलअज़ीज़ सय्याद", का जन्म 20 सितंबर, 1940 को एक प्रसिद्ध कुरानिक परिवार में हुआ था। उनके पिता, शेख "अब्दुलअज़ीज़ इस्माईल सय्याद", अपने अच्छे शिष्टाचार के लिए प्रसिद्ध थे और उनकी एक सुंदर आवाज़ थी, और वह विभिन्न गांवों और क्षेत्रों में एक जाना-पहचाना चेहरा थे।
अपनी लोकप्रियता के कारण शाबान सैय्याद सभाओं में जाते थे और अपने चाहने वालों की खातिर कुरान की तिलावत करते थे। मिस्र के यह का़री अपने समय के अन्य क़ारियों से अलग थे क्योंकि वह मिस्र में अल-अजहर विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों में से एक थे। 31 जुलाई, 1966 को, उन्हें एक वैश्विक का़री के रूप में जाना जाने लगा और 1975 में, वे रेडियो मिस्र में प्रवेश करने और कार्यक्रम करने में सक्षम हुए।
मिस्र के इस का़री का अपनी सुंदर आवाज, लंबी सांस और विभिन्न आवाजों के प्रदर्शन में कौशल के कारण महान मिस्र के क़ारियों के बीच एक विशेष स्थान था।
"सुबह का बादशाह" (मलेक अल-फ़ज्र ملک الفجر), "इस्लामी दुनिया के का़री", "आसमानी आवाज़ के मालिक", "क़ारियों का सूरमा" और "महफिलों का सितारा" वो लक़ब हैं जो शेख सय्यद को दिये गये थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन कुरान की तिलावत करने में बिताया और अल-अजहर विश्वविद्यालय में पढ़ाने और इस विश्वविद्यालय में एक सहयोगी प्रोफेसर और व्याख्याता के रूप में काम करने के बजाय कुरान पढ़ना और अपने दोस्तों की संगति में काम करना पसंद किया।
मिस्र के एक प्रसिद्ध संगीतकार स्वर्गीय "अम्मार अल-शरीई" ने मिस्र के इस का़री के बारे में कहा था कि "मैं शेख सय्याद की आवाज़ से हैरान हूं; क्योंकि उन्होंने संगीत के सभी पारंपरिक नियमों को तोड़ दिया है; शाबान सय्याद अपने तिलावत में पूरी तरह से रवानी के साथ कार्य करते हैं और बस पूरी सादगी से बहते पानी की तरह से नीचे उतर आते है"।
शेख सैय्याद को विभिन्न देशों से कई पुरस्कार, पदक और सम्मान प्राप्त हुए थे, जिनमें से अंतिम ब्रुनेई के राजा थे। उन्होंने जॉर्डन, सीरिया, इराक, इंडोनेशिया, फ्रांस (पेरिस), इंग्लैंड (लंदन) और अमेरिका सहित कई अरब, इस्लामिक और गैर-इस्लामिक देशों की यात्रा भी की।
1994 में उनमें किडनी खराब होने के लक्षण दिखाई दिए, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने तब तक तिलावत करना जारी रखा जब तक कि बीमारी ने उन्हें पूरी तरह से मजबूर कर दिया।
आखिरकार शेख शाबान अब्दुल अजीज सय्याद का अंतत: 58 वर्ष की आयु में 29 जनवरी, 1998 की सुबह ईद-उल-फितर के समय निधन हो गया।
https://iqna.ir/fa/news/4032185