कुरान में जिन बुरे नैतिक गुणों पर विचार किया गया है उनमें से एक ख़यानत यानी विश्वासघात और उसके प्रकार हैं। कुरान मनुष्यों में विश्वासघात की जड़ों की भी व्याख्या करता है।
तेहरान इक़ना: ख़यानत उन व्यवहारों में से एक है जो समाज की नींव के विनाश की ओर ले जाता है और धार्मिक ग्रंथों में इसकी कड़ी निंदा की गई है। विश्वासघात एक तरह से विश्वास का उल्लंघन है और वादे के उल्लंघन और अमानत की हानि का कारण बनता है। एक अमानत कभी-कभी एक Physical वस्तु होती है, लेकिन एक समझौते को भी एक प्रकार कै अमानत माना जाता है। इसी कारण जब एक विवाहित व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाता है तो उसे ख़ाइन कहते हैं। ख़यानत करने वाले को ख़ाइन कहा जाता है।
विश्वासघात की जड़ों में से एक नफ़्से अम्मारा पर ध्यान देना है। नफ़्सेअम्मारा उन हालतों में से एक है जिसमें एक व्यक्ति अपनी अक़्ल का पालन नहीं करता है, और इस वजह से वह पाप और ग़लती से पीड़ित होता है। नफ़्सेअमारा मानव व्यवहार का सब से गिरा स्तर है और यह मानव को गुनाह और पाप की ओर तेजी से प्रवृत्त करता है।
हज़रत यूसुफ़ ने ज़ुलेखा के व्यवहार के स्रोत को नफ़्सेअमारा के रूप में पहचाना:
"وَمَا أُبَرِّئُ نَفْسِي إِنَّ النَّفْسَ لَأَمَّارَةٌ بِالسُّوءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّي إِنَّ رَبِّي غَفُورٌ رَحِيمٌ;
मैं अपने आप को पाप से मुक्त नहीं समझता; क्योंकि विद्रोही आत्मा बहुत सी बुराई की आज्ञा देती है, सिवाय उसके जिसे मेरा रब दया करे; क्योंकि मेरा रब बड़ा क्षमाशील और दयालु है" (यूसुफ: 53)।
ख़यानत की एक और जड़ बहुदेववाद यानी शिर्क और ईश्वर की शक्ति और रिज़्क़ में पूरी तरह से विश्वास नहीं करना है। जिन लोगों का विश्वास कमजोर होता है वे कभी-कभी विश्वासघात के अपमान के आगे घुटने टेक देते हैं। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने धोखा नहीं दिया, तो वे जीवन में पीछे रह जाएंगे, और उनके हितों को प्रदान नहीं किया जाएगा।
कुरान में ख़यानत को कई श्रेणियों में बांटा गया है:
1. अल्लाह और पैगंबर के साथ विश्वासघात: कुरान की एक आयत मनुष्य को ईश्वर और पैगंबर के साथ विश्वासघात करने से मना करती है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَخُونُوا اللَّهَ وَالرَّسُولَ ؛
हे ईमान वालो! अल्लाह और पैगंबर के साथ विश्वासघात मत करो! (अनफाल: 27)।
2. लोगों का विश्वासघात: इसी आयत में, भगवान ने आज्ञा दी कि एक व्यक्ति को दूसरे लोगों की अमानत के प्रति ख्याल रखना चाहिए और उनके साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए:
وَتَخُونُوا أَمَانَاتِكُمْ وَأَنْتُمْ تَعْلَمُون
तुम अपनी अमानतों में विश्वासघात ना करो, जबकि तुम जानते हो (यह एक बड़ा पाप है)" (अनफाल: 27)।
इस्लाम के पवित्र पैगंबर (pbuh) ने इस अनैतिक व्यवहार के बारे में कहा:
"ارْبَعٌ لا تَدْخُلُ بَيْتاً واحِدَةٌ مِنْهُنَّ الَّا خَرِبَ وَ لَمْ يَعْمُرْ بِالْبَرَكَةِ الْخِيانَةُ وَ السِّرِقَةُ وَ شُرْبُ الْخَمْرِ وَ الزِّنا
चार चीज़ें ऐसी हैं कि अगर उनमें से एक भी घर में घुस जाए तो वह बर्बाद हो जाता है, और ख़ुदा की रहमत उसे दोबारा नहीं लौटाती। विश्वासघात, चोरी, शराब पीना और व्यभिचार यानी ज़िना।"
जिस समाज में इन चार चीजों में से एक या सभी आ जाती हैं, वह एक ही हुक्म के अधीन है, नष्ट हो जाएगा और आशीर्वाद से वंचित हो जाएगा।
* अयातुल्ला अल-उज़मा मकारिम शीराज़ी द्वारा लिखित पुस्तक "एथिक्स इन द क़ुरान" से लिया गया