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कुरान क्या है? /33

लोगों के बीच निर्णय करने के लिए एक किताब

15:00 - October 04, 2023
समाचार आईडी: 3479917
तेहरान(IQNA)अपराध और जुर्म ऐक विस्फोटक पदार्थ की तरह है जिसे अगर उसी की हालत पर छोड़ दिया जाए और कोई भी इसको दूर करने की कोशिश न करे, तो यह अपने मालिक और बाकी लोगों दोनों को नष्ट कर देता है। लेकिन जो हथियार इन ख़तरनाक पदार्थों से मुक़ाब्ला कर सकता है, वह भारी सजा का प्रावधान, ऐसा करने वालों के लिए है। इन दंडों की विशेषताओं में समाज के अन्य सदस्यों को इस जुर्म से रोकना शामिल है।

अपराध और जराऐम को समाज का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए जो मनुष्य की वासना और क्रोध की शक्ति से उत्पन्न होता है। ये दो सामाजिक घटनाएं सामाजिक न्याय के निर्माण के विरुद्ध एक बड़ी बाधा हैं। मनुष्य अपनी फ़ितरत और संरचना के संदर्भ में, न्याय पसंद होता है और भगवान ने उसे जो आदेश दिया है उसके संदर्भ में, वे समाज में न्याय करने के लिए बाध्य हैं। इसलिए, इस आदर्श को साकार करने के लिए ग़लत काम करने वालों के लिए कानूनों और दंडों की एक श्रृंखला स्थापित करना आवश्यक है। अमीरुल-मोमिनीन इमाम अली (अ.स) ने पवित्र कुरान को ऐक ऐसी किताब के रूप में पेश किया जिसमें कुछ ऐसे कानून शामिल हैं जो समाज में न्याय पैदा करते हैं।आप उपदेश 198 में, फ़रमाते हैं: «وَ حُكْماً لِمَنْ قَضَى‏ ؛ और यह उस व्यक्ति के लिए एक निर्णायक निर्णय है जो फ़ैसला करता है। (नहजुल-बलाग़ह: उपदेश 198)
इब्न मैषम बहरानी इमाम (अ.स.) के उपदेश के इस भाग के विवरण में लिखते हैं: (कुरान) न्याय करने वाले के लिए सही निर्णय है, यानि, न्यायाधीशों को अपने निर्णयों में जिन नियमों की आवश्यकता होती है वे क़ुरान में हैं हुक्म शब्द के स्थान पर हकम का भी वर्णन किया गया है। और इस सूरत में, इसका अर्थ यह है कि क़ुरान एक फ़ैसला करने वाला है जिसका उल्लेख न्यायाधीश करते हैं और वे उसके हुक्म से बाहर नहीं जा सकते। और सफलता ईश्वर की ओर से है.
हम कुछ कानूनों और दंडों का उल्लेख करते हैं जो कुरान ने अपराधों के लिए स्थापित किए हैं:
1. चोरी और डकैती के लिए सज़ा
सूरह अल-मायदा की आयत 38 में अल्लाह कहता है: " « وَ السَّارِقُ وَ السَّارِقَةُ فَاقْطَعُوا أَيْدِيَهُما جَزاءً بِما كَسَبا نَكالاً مِنَ اللَّهِ وَ اللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيم‏ ؛  ईश्वरीय दंड के रूप में पुरुष चोर और महिला चोर के हाथ काट दो, और ईश्वर शक्तिशाली और बुद्धिमान है। (माएदा:38)
यद्यपि पवित्र कुरान में कार्यों के संबंध में स्पष्ट आदेश हैं, इन स्पष्ट आदेशों को भी तफ़्सीर की आवश्यकता होती है, और जिन मुफ़स्सिरों को इन आयतों की व्याख्या करनी चाहिए वे मासूम इमाम (अ.स) हैं। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अपराधों के खिलाफ जो दंड दिए जाते हैं, उनके लिए ऐसी शर्तों की आवश्यकता होती है कि उन शर्तों के होते हुऐ, सजा लागू हो। उदाहरण के लिए, तफ़्सीरे नमूना, हदीसों का हवाला देते हुए, चोरी और डकैती के लिए एक ही सजा की शर्तों के बारे में लिखती है: चोर आक़िल और बालिग़ होना चाहिए, और ऐसा काम करने में ऐख़्तेया भी होना चाहिए।
इस आयत के बारे में एक दिलचस्प बात: जलालुद्दीन सियूती, कुरान विज्ञान की अपनी पुस्तक में, इस आयत के संदर्भ में, इस आयत में महिला चोर से पहले एक पुरुष चोर का उल्लेख क्यों करता है, इसका कारण बताते हैं, क्योंकि अधिक चोर पुरुष होते हैं इस लिऐ पहले पुरुषों का जिक्र किया और फिर महिलाओं का।
2. ज़िना की सज़ा
सूरह नूर की आयत 2 में अल्लाह कहता है: «الزَّانِيَةُ وَ الزَّانِي فَاجْلِدُوا كُلَّ واحِدٍ مِنْهُما مِائَةَ جَلْدَةٍ وَ لا تَأْخُذْكُمْ بِهِما رَأْفَةٌ فِي دِينِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَ الْيَوْمِ الْآخِرِ وَ لْيَشْهَدْ عَذابَهُما طائِفَةٌ مِنَ الْمُؤْمِنِين‏ ؛ ज़िना करने वाले पुरुषों और महिलाओं को सौ-सौ बार कोड़े मारो, और यदि तुम ईश्वर और न्याय के दिन पर विश्वास करते हो तो ईश्वर के धर्म में नर्मी और रहम(और झूठे प्रेम) को कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दो, और मोमनीन के एक समूह को उनकी सजा का गवाह होना चाहिए।'' (नूर: 2)
कुरान मेहरबानी की किताब है, और तथ्य यह है कि यह आयत लोगों को इन लोगों से झूठा प्यार दिखाने से रोकती है, इस कृत्य के परिणामों के कारण है। यानी अगर इन लोगों के लिए सजा पर विचार नहीं किया गया तो ये और भी आक्रामक हो जाएंगे और दोबारा अपना घिनौना काम दोहराएंगे. इसके अलावा, जब बाकी लोग देखते हैं कि कानून उनके अनदेखी कर रहा है और उनसे कोई लेना-देना नहीं है, तो वे भी इन चीजों की ओर मुड़ जाते हैं जिसका नतीजा यह होता है कि समाज पस्ती और पतन की ओर चला जाता है। इसलिए क़ुरान सोच-समझकर, तार्किक और चतुराई से समाज के सुधार के लिए कानून बनाता है।
 

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