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रमजान की रूहानी भावना को बरक़रार रखने में; आंतरिक और बाहरी उपदेशक की आवश्यकता है

5:56 - April 25, 2023
समाचार आईडी: 3478984
पूरे वर्ष मानव जीवन में रमज़ान की आध्यात्मिकता की बरक़रारी के लिए एक आंतरिक और बाहरी उपदेशक की आवश्यकता होती है, और रमज़ान की रूहानियत की निरंतरता के लिए, एक व्यक्ति को आंतरिक उपदेश के अलावा बड़ों और विद्वानों की नसीहत का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, ताकि वह इस पथ को जारी रख सके।

पूरे वर्ष मानव जीवन में रमज़ान की आध्यात्मिकता की बरक़रारी के लिए एक आंतरिक और बाहरी उपदेशक की आवश्यकता होती है, और रमज़ान की रूहानियत की निरंतरता के लिए, एक व्यक्ति को आंतरिक उपदेश के अलावा बड़ों और विद्वानों की नसीहत का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, ताकि वह इस पथ को जारी रख सके।

 

रमज़ान के महीने के बाद जिन मुद्दों पर ध्यान देना हमारे लिए महत्वपूर्ण है उनमें से एक यह है कि अगर हम रमज़ान के महीने से लाभान्वित होते हैं, तो हम इसे बरक़रार सकें और इसकी हिफाज़त कर सकें। कुछ बुजुर्ग इस आध्यात्मिकता को अगले वर्ष के रमजान के महीने तक भी बढ़ाने की कोशिश करते हैं, ताकि वे अगले रमजान के महीने के लिए उच्च पद पर हों और यदि वे रूहानियत के मार्ग में प्रगति की सीढ़ी पर चलते हैं, तो वे इसके उच्च जीनों तक पहुँचें।

 

इस संबंध में, यदि हम मानव निर्माण के सिद्धांत पर ध्यान देना चाहते हैं, तो हम देखेंगे कि मानव वजूद अन्य सभी मख़लूक़ से भिन्न है। फ़रिश्तों का केवल एक आध्यात्मिक और रूहानी पहलू होता है, इसलिए उन्हें मलक कहा जाता है। जानवरों में पशुता और हैवानियत के पहलू होते हैं, लेकिन मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो जानवरों के साथ हैवानियत के पहलू और माद्दी पहलू में एक है, वह फ़रिश्तों के साथ रूहानियत और आध्यात्मिक पहलू को साझा करता है, और इस कारण से , उसे इरफान और सूफ़ियत में (जामे कौन: ) कहा जाता है। यानी ऐसी हस्ती और सृजन जिसमें जिस्मानी और रूहानी दोनों अस्तित्व की समग्रता है।

 

सरल शब्दों में, यदि हम इस दृष्टिकोण से मनुष्य को बयान करना चाहते हैं, तो हमें यह कहना होगा कि मनुष्य का एक जिस्मानी पहलू है जिसकी अपनी आवश्यकताएँ और जरुरतें हैं, और स्वास्थ्य और बीमारी इसके लिए महत्वपूर्ण हैं, और हम निर्देशों की एक सिलसिले का पालन करने के लिए इसके लिए बाध्य हैं कि अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए निरीक्षण करें। साथ ही, मनुष्य का एक आध्यात्मिक रुहानी पहलू भी है, जिसके लिए एक प्रकार के खाने और स्वास्थ्य के रख-रखाव की भी आवश्यकता होती है। बुजुर्ग आमतौर पर अपनी दुआओं में खुदा से सेहत मांगते हैं, जैसा कि हमें सहीफ़ा सज्जादिय्याह की दुआओं में सिखाया गया है, कि वे सिर्फ शारीरिक सेहत ही नहीं देखते और खुदा से यूं कहते हैं; हे खुदा! हमारे शरीर और आत्मा को स्वस्थ रख और हमें आत्मा और हृदय का स्वास्थ्य प्रदान कर।

 

पवित्र क़ुरआन कहता है कि क़यामत के दिन हमारे लिए उपयोगी संपत्ति में से एक स्वस्थ हृदय है। "يَوْمَ لَا يَنْفَعُ مَالٌ وَلَا بَنُونَ / إِلَّا مَنْ أَتَى اللَّهَ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ" चीजों का एक सिलसिला जैसे खाना, सांस लेना, पीना आदि जरुरी है। 

लेकिन क्योंकि इस दुनिया की चकाचौंध की वजह से वह दीन से और रूहानियत से ग़ाफ़िल हो सकता है इसलिए जरूरी है कि रोकने टोकने का इंतजाम किया जाए ताकि उस दुनिया की याद दिलाई जा सके।

साथ ही, मनुष्य का कमाल यह है कि उसका इरादा उसकी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ले। बच्चों में, इच्छा इरादे पर हावी होती है, लेकिन संस्कारित मनुष्य इच्छा पर हावी हो जाते हैं। 

रमजान का महीना एक बहुत ही खूबसूरत प्रयास है जिसमें इरादा इच्छा पर विजय प्राप्त करता है। इस महीने में व्यक्ति इबादत करना चाहता है, इसलिए उसे भोजन और पोषण की कितनी भी इच्छा हो, वह इस इच्छा को एक तरफ रख देता है और एक मजबूत और आध्यात्मिक इच्छा के साथ अज़ीम ईश्वर की सेवा करता है।

नहज अल-बालाग़ा में अमीर अल-मुमिनीन (अ.स.) के अनुसार, शायद रोज़ा रखने वाले लोग हैं जो केवल भूख और प्यास वाले हैं। शायद रात को जगाने लोग जो केवल रात में जागने की कठिनाई वाले हैं। धन्य हैं वे जिन्होंने रोज़ा रखा और स्वस्थ हृदय के साथ जागे।

 

* इकना के साथ मोहम्मद असदीगरमारोदी के साक्षात्कार का एक अंश

 

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