दिल्ली से इकना की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलूस में शामिल लोगों ने फ़िलिस्तीन के मज़लूम लोगों से गहरी हमदर्दी जताई और अमरीका व इस्राइल के ख़िलाफ़ मज़बूती से डटे रहकर नेतृत्व करने वाले आयतुल्लाह ख़ामेनेई से भी ऐकजुटता दिखायी। लोग उनके पोस्टर और तस्वीरें उठाए हुए थे और नारे बुलंद कर रहे थे – “लब्बैक या ख़ामेनेई।”
हाथों में “फ़्री फ़िलिस्तीन”, “स्टैंड विद ग़ज़ा” और “जालिमों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करो” जैसे नारों वाले बैनर और प्लेकार्ड लिए, मर्द, औरतें, बच्चे और बुज़ुर्ग सभी इस जुलूस में शामिल हुए। पूरे जुलूस के दौरान ग़ज़ा में चल रहे नरसंहार की सख़्त मुख़ालफ़त और इंसाफ़ की मांग करते नारे गूंजते रहे।
शिरकत करने वालों ने ज़ोर देकर कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़िंदगी और उनकी शिक्षाएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि हमेशा ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा होना चाहिए और मज़लूमों का साथ देना चाहिए। उन्होंने इमाम हुसैन (अ.स.) का कथन दोहराया: “ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना ज़रूरी है, वरना इंसान ख़ुद ज़ालिमों में गिना जाएगा।”
इस तरह यह जुलूस केवल धार्मिक आयोजन न रहकर इंसाफ़ और मज़लूमों के साथ ऐकजुटता का एक पुरअमन लेकिन ताक़तवर पैग़ाम बन गया।
प्रतिभागियों ने दोहराया कि भारत और भारतीय हर तरह के नरसंहार, ज़ुल्म और तानाशाही के सख़्त ख़िलाफ़ हैं।